धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
जो
देवी सब जीवनि माहीं।
चेतन रूप विराजति आहीं।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
जो देवी बनि बुद्धि स्वरूपा।
सब जीवनि उर रहति अनूपा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि जो निद्रा रूपा।
जो जगदम्बा सुधा स्वरूपा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
क्षमा रूप में जो महरानी।
जाति रूपिणी जग उर आनी।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि उर लज्जा शान्ती।
तुम्हीं मातु श्रद्धा अरु कान्ती।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
लक्ष्मी रूप वास सबके उर।
स्मृति, वृत्ति बनी सब उर पुर।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि महं जो मां तुष्टी।
दया रूप रहि करती पुष्टी।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
मातृ रूप सब जीवनि वासा।
भ्रान्ति रूप तुम सबके पासा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
चेतन रूप विराजति आहीं।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
जो देवी बनि बुद्धि स्वरूपा।
सब जीवनि उर रहति अनूपा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि जो निद्रा रूपा।
जो जगदम्बा सुधा स्वरूपा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
क्षमा रूप में जो महरानी।
जाति रूपिणी जग उर आनी।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि उर लज्जा शान्ती।
तुम्हीं मातु श्रद्धा अरु कान्ती।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
लक्ष्मी रूप वास सबके उर।
स्मृति, वृत्ति बनी सब उर पुर।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि महं जो मां तुष्टी।
दया रूप रहि करती पुष्टी।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
मातृ रूप सब जीवनि वासा।
भ्रान्ति रूप तुम सबके पासा।।
ताहि नमामि नमामि नमामी।
नमो नमो माता प्रनमामी।।
जीवनि की इन्द्रिय सकल पर तुम्हार अधिकार।
व्यापक सब में व्याप्ति मां, प्रनवउं बारम्बार।।४क।।
जै जै चेतन रुपिणी, सकल जगत में व्याप्त।
नमो नमो पुनि पुनि नमन, नमो नमो हे मातु।।४ख।।
सुरपति सेए तव चरन, सहित सकल सुरवृन्द।
जस कीन्हेउ कल्याण तस सुभकरि हरु दुख द्वन्द्व।।४ग।।
जे जन सुमिरत भजत नित हरति मातु सब कष्ट।
सोइ जननी संकट हरे बरदायिनि अस इष्ट।।४घ।।
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