लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

212 पाठक हैं

श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में


पुनि पुनि विनय करहिं सब सुरगन।
विनवत विलपत उमगत तन मन।।
तेहिं अवसर गिरिराज किसोरी।
गंग नहान चलीं मां गौरी।।
बंकिम भृकुटि मनोहर नयना।
जगदम्बा बोलीं मृदु बयना।।
केहि सुमिरत सुरगन इत आई।
पुनि तन प्रगटि सिवा समुझाई।।
सुंभ निसुंभ करत अपमाना।
आए हारि देवि भय माना।।
चरन सरन माता तव आए।
प्रनवत तुमहिं प्रथम वर पाए।।
सिवा जन्म देवी तन कोषा।
नाम कौसिकी सबु जग पोषा।।
निज तन तें कौसिकिहिं निकाली।
गौरी मातु तबहिं तें काली।।
एहिं ते सोइ काली कहलावैं।
वास हिमालय पर नित पावैं।।

जगदम्बा मां कौसिकी परम मनोहर रूप।
चण्ड मुण्ड दोउ सुंभ गन, देखेऊ रूप अनूप।।५।।

देखि सुंभ ढिग कियेउ पयाना।
लागे करन मातु गुनगाना।।
परम पुनीत मनोहर नारी।
देखा दिव्य रूप तनुधारी।।
गौर बरन अनुपम अति देहा।
तुहिनाचल कीन्हेसि निज गेहा।।
तिभुवन तीनि काल जग माहीं।
देखेउ सुनेउ रूप अस नाहीं।।
निसिचरनाह खोज करवाई।
आनन्दहु निज भवन बुलाई।।
तेहिं सम नारि न कौनउ देसा।
अंग-अंग सुमनोहर वेसा।।
सुर नर असुर नाग मुनि सर्वा।
किन्नर यक्ष पितर गन्धर्वा।।
चितवत चकित चित्त असुरेसा।
प्रभापुंज पसरत सब देसा।।
अबहु हिमाचल सिखर विराजति।
देखु देवि छबि लोकनि लाजति।।
गय हय मनि रतननि बहु आनी।
तव आधीन सकल सुखमानी।।
सुरपति जीति एरावत लायो।
उच्चस्रवा परिजात मंगायो।।

विधि ते लीनेउ नाथ तुम, राजहंस जुत यान।
रत्न रूप अति दिव्य रथ, सो तव अजिर सुहान।।६क।।
महापद्‌म निधि धनद तें, लियो नाथ तुम छीन।
किंजल्की माला जलधि, कमल न जासु मलीन।।६ख।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Maneet Kapila

Can you plz show any of the अध्याय