लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

212 पाठक हैं

श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में


दूत सत्य तव वचन प्रमाना।
संशय नाहिं सुंभ बलवाना।।
असुरेस्वर तिहुं लोकनि स्वामी।
पुनि निसुंभ भ्राता अनुगामी।।
सुनहु दूत पन अहइ हमारा।
तजे ताहिं मिथ्या व्यवहारा।।
जदपि कीन्ह पन मम अज्ञाना।
तदपि तजे अतिसय अपमाना।।
मोहि सन लरहि हरइ अभिमाना।
जीति मोहिं अस जो बलवाना।।
बरउं ताहि दूसर कोउ नाहीं।
अस पन कियउ दूत मन माहीं।।
सुंभ निसुंभ असुर बरिबंडा।
जग दूसर नहिं वीर प्रचण्डा।।
लरहिं वेगि जीतहिं रन माहीं।
बरहिं मोहिं अचरज कछु नाहीं।।
बोला असुर दूत करि कोहा।
देवि तोहि अस वचन न सोहा।।
बोलत नहिं कछु वचन विचारी।
सुंभ समान कौन तनुधारी।
तीनि लोक अस कोउ जग नाहीं।
सुंभ निसुंभ जितइ रन माहीं।।
सेवक सकल सुरन संहारी।
तेहि सन लरन चहत सुकुमारी।।

सुरपति सुरगन संग सदा, सुंभहिं देखि परात।
तुम अबला तेहि संग भला, कहां जुद्ध ठहरात।।९।।

मानहु वचन चलहु तिन पासा।
करु पयान मन राखि हुलासा।।
नतरु पकरि झोंटी बरिआई।
धरनि घसीटति चलब लवाई।।
केस पकरि खींचत लै जइहैं।
तब तुम्हार मरजाद नसैहैं।।
बिहँसि बचन बोलीं जगजननी।
सत्य वचन धावन तुम बरनी।।
सुंभ निसुंभ महाबलवाना।
उन समान जोधा नहिं आना।।
अस पन कीन्ह मूढ़ता मोरी।
तदपि दूत कइसे अब तोरी।।
मम संदेस सुनावहु जाई।
पठयउ पुनि दूतहिं समुझाई।।

जाइ कहहु असुरेस सन, मम सन्देस बुझाइ।
पुनि जस समुझहिं तस करहिं, कहतिं मातु मुसुकाइ।।१०।।

० ० ०

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Maneet Kapila

Can you plz show any of the अध्याय