धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
उत
सुरगन मन अस अनुमाना।
असुर नास निश्चय जग जाना।।
निज निज सकति बदन तें काढ़ी।
गईं जहां चण्डी मां ठाढ़ी।।
विधि हरि हर सुरपति षटआनन।
निज-निज तेज प्रगट करि अर्पन।।
हंसवाहिनी मां ब्रह्मानी।
अक्ष कमण्डल लै निज पानी।।
वृषभारूढ़ सिवा असि सीसा।
कंगन नाग सूल कर दीसा।।
कौमारी सिखि वाहन राजति।
षडानना कर सक्तिहिं साजति।।
गरुड़ासन पर सस्त्र संभारे।
गदा चक्र धनु असि कर धारे।।
संख लिए वैष्नवि तहं आही।
आवत निकट मातु वाराही।।
नारसिंहि मां निज बपु धारी।
कंध केस तारक दुतिहारी।।
इन्द्र सक्ति कर बज्र सवारी।
सहस नयन गजराज सवारी।।
असुर नास निश्चय जग जाना।।
निज निज सकति बदन तें काढ़ी।
गईं जहां चण्डी मां ठाढ़ी।।
विधि हरि हर सुरपति षटआनन।
निज-निज तेज प्रगट करि अर्पन।।
हंसवाहिनी मां ब्रह्मानी।
अक्ष कमण्डल लै निज पानी।।
वृषभारूढ़ सिवा असि सीसा।
कंगन नाग सूल कर दीसा।।
कौमारी सिखि वाहन राजति।
षडानना कर सक्तिहिं साजति।।
गरुड़ासन पर सस्त्र संभारे।
गदा चक्र धनु असि कर धारे।।
संख लिए वैष्नवि तहं आही।
आवत निकट मातु वाराही।।
नारसिंहि मां निज बपु धारी।
कंध केस तारक दुतिहारी।।
इन्द्र सक्ति कर बज्र सवारी।
सहस नयन गजराज सवारी।।
सकल सक्ति निज संग लै, बोले संभु सुजान।
करहु असुर संहार अब, रखहु प्रीति अरु मान।।४क।।
चण्डी तन तें तब प्रगट मातु शिवा को रूप।
सत सत सिवा समान रब करन लगीं तब भूप।।४ख।।
मातु सिवा सिब से कहतिं, नाह वचन मम मान।
जाहु सुंभ ढिग दूत बन, करहु वचन परमान।।४ग।।
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