धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः।।
अष्टम अध्याय : रक्तबीज-बध
ध्यान
अनिमादिक
आठहुँ सिद्धिनकी किरनानि
सदा तोहिमें विलसे।।
कर अंकुस पास सरासन बान सदा जगदम्ब तिहारे लसे।।
तव आखिन में भवभामिनि हे करुना लहरै सब पीर नसे।
जय मां अरुना करुना करि के उर आनि बसो विनती तुमसे।।
मेधा
मुनि पुनि नृपति से करत कथा आरंभ।कर अंकुस पास सरासन बान सदा जगदम्ब तिहारे लसे।।
तव आखिन में भवभामिनि हे करुना लहरै सब पीर नसे।
जय मां अरुना करुना करि के उर आनि बसो विनती तुमसे।।
चण्ड-मुण्ड कर निधन सुनि बोला असुर निसुंभ।।१।।
सकल
सेन निज निकट बुलावा।
जुद्ध हेतु रणनीति बनावा।।
बोला सुंभ निसाचर कोही।
सुनहु सकल जूथप सुरद्रोही।।
उदाजूध गन रन अभिलाषी।
सेनापति तिन संग छियासी।।
कम्बु दनुज कुल अति बलवाना।
चौरासी नायक जग जाना।।
कोटिवीर्य कुल केर पचासा।
सेन साजि चलि सहित हुलासा।।
धोम्रवंश कर सौ सेनानी।
साजहु चमू चलहु बच मानी।।
जुद्ध हेतु रणनीति बनावा।।
बोला सुंभ निसाचर कोही।
सुनहु सकल जूथप सुरद्रोही।।
उदाजूध गन रन अभिलाषी।
सेनापति तिन संग छियासी।।
कम्बु दनुज कुल अति बलवाना।
चौरासी नायक जग जाना।।
कोटिवीर्य कुल केर पचासा।
सेन साजि चलि सहित हुलासा।।
धोम्रवंश कर सौ सेनानी।
साजहु चमू चलहु बच मानी।।
कालक दौहृद मौर्य अरु कालकेय अति घोर।
कटक साजि निज-निज चलहु करन हेतु रन रोर।।२।।
अस
कहि सकल सेन संग लीन्हा।
सुंभ चलन हित आयसु दीन्हा।।
चला कटक निसिचर कुल केरा।
जाइ सकल तुहिनाचल घेरा।।
देखि असुरवाहिनी विसाला।
गरजी मां चण्डिका कराला।।
धनुटंकार कीन्ह अति घोरा।
कंपत धरा गगन चहुं ओरा।।
तब लगि सिंह करत हुंकारा।
घण्टा धुनि पुनि भई अपारा।।
धनुटंकार सिंह धुनि घोरा।
पुनि घण्टा रव जुरत कठोरा।।
गूंजहि दिसि कंपहिं सुरसाली।
बदन बढ़ावति हैं मां काली।।
सुनत असुरगन धुनि अति घोरा।
पहुंचे सकल चण्डिका ओरा।।
सुंभ चलन हित आयसु दीन्हा।।
चला कटक निसिचर कुल केरा।
जाइ सकल तुहिनाचल घेरा।।
देखि असुरवाहिनी विसाला।
गरजी मां चण्डिका कराला।।
धनुटंकार कीन्ह अति घोरा।
कंपत धरा गगन चहुं ओरा।।
तब लगि सिंह करत हुंकारा।
घण्टा धुनि पुनि भई अपारा।।
धनुटंकार सिंह धुनि घोरा।
पुनि घण्टा रव जुरत कठोरा।।
गूंजहि दिसि कंपहिं सुरसाली।
बदन बढ़ावति हैं मां काली।।
सुनत असुरगन धुनि अति घोरा।
पहुंचे सकल चण्डिका ओरा।।
सिंहवाहिनी चण्डिका मां काली जहं ठाढ़ि।
सब खल दल घेरत तिनहिं, भई असुर बल बाढ़ि।।३।।
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