धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
|
3 पाठकों को प्रिय 212 पाठक हैं |
श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
नाम
कर्म जानहिँ जग माहीं।
पाठ करत सब सुख मिलि जाहीं।
महाकालिकहिं अस समुझावा।
सतगुन तें पुनि रूप बनावा।।
अपर रूप धरि मातु त्रिनयना।
सुन्दर गौर समुज्वल वरना।।
सरद सुधाकर सम सुचि सोहैं।
त्रिभुवन दिव्य रूप ते मोहैं।।
सुभगा सुचि कर पुस्तक बीना।
अक्षमाल अंकुश पुनि लीना।।
परम सुन्दरी नारि ललामा।
महालक्ष्मि बोली पुनि नामा।।
विद्यामहा भारती धीस्वरि।
महावानि सरसुति बागीस्वरि।।
तुमहिं वेदगर्भा अरु ब्राह्मी।
कामधेनु आर्या अस नामी।।
पुनि कह महालच्छमी माता।
सुनहु कालि सरसुति मम बाता।
बिचरहु निज स्वरूप अनुसारी।
पुरुष सहित नारी सुकुमारी।।
पाठ करत सब सुख मिलि जाहीं।
महाकालिकहिं अस समुझावा।
सतगुन तें पुनि रूप बनावा।।
अपर रूप धरि मातु त्रिनयना।
सुन्दर गौर समुज्वल वरना।।
सरद सुधाकर सम सुचि सोहैं।
त्रिभुवन दिव्य रूप ते मोहैं।।
सुभगा सुचि कर पुस्तक बीना।
अक्षमाल अंकुश पुनि लीना।।
परम सुन्दरी नारि ललामा।
महालक्ष्मि बोली पुनि नामा।।
विद्यामहा भारती धीस्वरि।
महावानि सरसुति बागीस्वरि।।
तुमहिं वेदगर्भा अरु ब्राह्मी।
कामधेनु आर्या अस नामी।।
पुनि कह महालच्छमी माता।
सुनहु कालि सरसुति मम बाता।
बिचरहु निज स्वरूप अनुसारी।
पुरुष सहित नारी सुकुमारी।।
अस कहि पहिलेहि निरमयउ, महालक्ष्मि निज रूप।
मिथुन राजि वर कमल पर, जोरी परम अनूप।।५।।
पुरुषहिं
कहेउ लच्छमी माता।
ब्रह्मा विधि विरंचि अरु धाता।।
श्री कमला लक्ष्मी अरु पद्मा।
नारि नाम बोलीं मां परमा।।
महाकालि पुनि जे उपजाए।
महासरस्वति जिनहिं बनाए।।
नीलकण्ठ सोहत ससि सीसा।
गौर बरन अनुपम जगदीसा।।
स्वेत बरन उपजी संग नारी।
महाकालि तें अस अवतारी।।
त्रिनयन रुद्र कपर्दी संकर।
पुनि स्थाणु नाम यह जो नर।।
कामधेनु विद्या अक्षरा।
भाषा त्रयी नाम पुनि स्वरा।।
संग नारि राजति अभिरामा।
राखेउ मातु ताहि कर नामा।।
ब्रह्मा विधि विरंचि अरु धाता।।
श्री कमला लक्ष्मी अरु पद्मा।
नारि नाम बोलीं मां परमा।।
महाकालि पुनि जे उपजाए।
महासरस्वति जिनहिं बनाए।।
नीलकण्ठ सोहत ससि सीसा।
गौर बरन अनुपम जगदीसा।।
स्वेत बरन उपजी संग नारी।
महाकालि तें अस अवतारी।।
त्रिनयन रुद्र कपर्दी संकर।
पुनि स्थाणु नाम यह जो नर।।
कामधेनु विद्या अक्षरा।
भाषा त्रयी नाम पुनि स्वरा।।
संग नारि राजति अभिरामा।
राखेउ मातु ताहि कर नामा।।
नाम सुनहु जिन प्रगट किय, महासरस्वति मातु।
कृष्ण बरन जो पुरुष वर, गौरि नारि जग ख्यातु।।६।।
|