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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश

चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


आयु

राजा नौशेरवां को जो भी मिले, उसी से कुछ न कुछ सीखने का उनका स्वभाव था। नौशेरवां एक दिन भेष बदलकर जा रहे थे। उन्हें एक वृद्ध किसान मिला। किसान के बाल पक गये थे, पर जबानों जैसी चेतनता विद्यमान थी। उसका रहस्य जानने की इच्छा से नौशेरवां ने पूछा- 'महानुभाव! आपकी आयु कितनी होगी? वृद्ध ने मुस्कान भरी दृष्टि नौशेरवां पर डाली और हँसते हुए उत्तर दिया- 'कुल चार वर्ष।‘

नौशेरवां ने सोचा बूढ़ा दिल्लगी कर रहा है, पर सच-सच पूछने पर भी जब उसने चार वर्ष की आयु बताई तो उन्हें क्रोध आ गया। एक बार तो मन में आया कि उसे बता दूँ- मैं साधारण व्यक्ति नहीं, राजा हूँ पर उन्होंने विचार किया कि उत्तेजित होने वाले व्यक्ति सच्चे जिज्ञासु नहीं हो सकते। अब नौशेरवां ने नये सिरे से पूछा- 'पितामह! आपके बाल पक गये, शरीर में झुर्रियाँ पड़ गईं, लाठी लेकर चलते हैं, मेरा अनुमान है कि आप 80 से कम न होंगे, फिर आप अपने को चार वर्ष का कैसे बताते हैं?’

वृद्ध ने इस बार गम्भीर होकर कहा- आप ठीक कहते हैं, मेरी आयु 80 वर्ष की है, मैंने 76 वर्ष धन कमाने, व्याह-शादी और बच्चे पैदा करने में बिताए। ऐसा जीवन कोई पशु भी जी सकता है, इसलिए उसे मैं मनुष्य की जिन्दगी नहीं, किसी पशु की जिन्दगी मानता हूँ। मेरा मन ईश्वर उपासना, जप, तप, सेवा, सदाचार, दया करुणा, उदारता में लग रहा है। इसलिए मैं अपने को चार वर्ष का ही मानता हूँ। नौशेरवां वृद्ध का उत्तर सुनकर अति संतुष्ट हुये और प्रसन्नतापूर्वक अपने राजमहल लौटकर सादगी, सेवा और सज्जनता का जीवन जीने लगे।

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