लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश

चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

139 पाठक हैं

सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


मनुष्य जन्म का उद्देश्य

आज के मानव ने अपने इस मनुष्य-जन्म के कई उद्देश्य बना रखे हैं। कोई अपने को सुखी-सम्पन्न करना चाहता है। कोई यश, ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है। कोई धनार्जन में लगा है। कोई डाँक्टर बनकर अपना जीवन सफल करना चाहता है। कोई इंजीनियर, वकील या कोई और उच्च पद प्राप्त कर अपनी ख्याति स्थापित करना चाहता है। तो कोई ऊँची-ऊँची इमारतें बनवाकर उसमें नाम करना चाहता है। सब अपने आपको कुछ न कुछ बनाने की इच्छा रखते हैं, सब अपने को आगे करना चाहते हैं। कोई किसी को आगे नहीं होने देता। सब के सब सुख की खोज में जुटे हुए हैं।

मगर यह तो मानव के जीवन का उद्देश्य नहीं। यह तो भौतिक सुख है, जो नष्ट होने वाला है। सच्चा सुख या फिर कहें कि मानव के जन्म का उद्देश्य तो इस संसार की चौरासी लाख जीवन योनियों से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति प्राप्त कर लेने में है। हर मनुष्य को मरने के बाद किसी अन्य योनि में डाल दिया जाता है। अब जिस योनि में उसे डाला है वह अच्छी है या बुरी यह तो उसकी जीवन साधना पर निर्भर करता है उसके कर्मों पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में अच्छे कर्म करता है माता-पिता की सेवा करता है, गुरुजनों का सम्मान करता है, अपने आपको सभी दुर्गुणों से विरक्त ही रखता है, बूढ़े व्यक्तियों की मदद करता है, बड़ों का आदर करता है तथा सभी अच्छे गुणों का अनुकरण करता है, वह किसी अच्छी योनि को प्राप्त होता है, किन्तु जो व्यक्ति अपने आप को दुर्गुणों के ही सम्पर्क में रखकर सुखी मानता है, पाप एवं बुरे कर्मों को करते-करते ही जो अपना जीवन व्यतीत कर देता है तथा इसी को अपने जीवन का उद्देश्य समझता है वह किसी निकृष्ट योनि में चला जाता है। इस प्रकार जो अच्छे कर्म करता है, वह अच्छी योनि में जाता है। मगर चौरासी लाख योनियों का भागीदार विशेष रूप से वह बनता है जो बुरे कर्म करने वाला है। वह निश्चित ही नर्क का भागी हो जाता है और चौरासी लाख योनियों के इस चक्रव्यूह में फँसकर रह जाता है। मगर सच्चा सुख न तो अच्छी योनि को प्राप्त कर लेने में है, न बुरी योनि को पा लेने में है। सच्चा सुख तो परमात्मा को प्राप्त कर लेने में है। इस चौरासी लाख योनियों के बन्धन से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति पाने में है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book