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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


पीपल वृक्ष

विभिन्न भाषाओं में नाम

(अ) संस्कृत - अश्वत्थ, चलदल, देवात्म।
(ब) हिन्दी - पीपल, पीपली, पीपर।
(स) गुजराती - पीपली, जरी, पीपला।
(द) तमिल - नारायणम, अस्वतम।
(य) तेलुगु - बोध, रावीचेट्ड।
(र) फारसी - दरणत लरजो।
(ल) लेटिन - फायकस रिलीजिओसा (Ficus Religiosa)।

पीपल का वृक्ष हिन्दू शास्त्रों में बहुत पूज्य माना गया है। इस वृक्ष के अन्दर प्राण वायु को शुद्ध करने का दिव्य गुण रहता है। यह वृक्ष भारतवर्ष में सभी जगह पाया जाता है। गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ। इस वृक्ष का तेलुगु नाम बोधि या बोध इस कारण पड़ा, क्योंकि भगवान बुद्ध ने इस वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की तथा निर्वाण पद प्राप्त किया। वनस्पति जगत में मात्र पीपल ही अकेला ऐसा वृक्ष है, जिसमें कीड़े नहीं लगते हैं।

भारतवर्ष में पीपल को वृक्षराज की संज्ञा भी दी गई है, क्योंकि इस वृक्ष के गुण सभी वृक्षों में श्रेष्ठ हैं। सैकड़ों यज्ञ कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह मात्र पीपल वृक्ष के एक बार पूजन करने से ही प्राप्त हो जाता है।

पीपल वृक्ष के आयुर्वेदिक महत्व

पीपल वृक्ष का आयुर्वेद में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह कई बीमारियों का इलाज करने में उपयोगी रहा है। पीपल वृक्ष की छाल स्तम्भक, रक्त-संग्राहक और पौष्टिक होती है। पीपल वृक्ष के फल पाचक तथा रक्त को शुद्ध करने वाले होते हैं। पीपल वृक्ष की छाल सकोंचक होती है तथा सुजाक रोग के इलाज के लिए उपयोग में लाई जाती है। पीपल वृक्ष की छाल के अन्दर कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के फोडों को पकाने का काम करते हैं। इसके सुरणे फलों का चूर्ण पन्द्रह दिनों तक पानी के साथ लेने से दमे की बीमारी से बड़ा लाभ होता है। इस प्रयोग से स्त्रियों का बंध्यत्व भी नष्ट हो जाता है तथा वे संतानोत्पत्ति के लायक हो जाती है। इसके कुछ उपयोग निम्नलिखित हैं-

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