व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
महर्षि सुश्रुत लिखते हैं कि राक्षस नाशक (जीवाणु नाशक) द्रव्यों से जच्चा को धूपित करें और व्रण का उचित उपचार करें। अक्सर प्रसवोपरान्त प्रसूता की योनि इत्यादि भाग तथा शिशु की नाल छेदन होने के कारण जच्चा-बच्चा दोनों ही ब्रणित होते हैं। क्षतावस्था में अनेक रोगोत्पादक जीवाणु घाव द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर रोगों की उत्पत्ति करते हैं, जिनमें टिटेनी नाम का जीवाणु प्रधान है। इन्हीं से रक्षार्थ धूप देने का निर्देश सुश्रुत ने किया है।
वृद्धजीवक तन्त्र' नामक ग्रन्थ के धूपाध्याय में भी यही बात कही गई है- 'वस्त्र शय्यासनाद्यं च बाला न घूपयेद् त्रिषक्' अर्थात् न केवल शिशु को बल्कि उसके तथा प्रसूता के वस्त्र, शैय्या और आसनादि जो भी व्यवहृत होते हों उन सभी को रक्षोध्न (जीवाणुनाशक) धूपों से धूपित करें। यदि इस अवस्था में असावधानी हो जाती है तो जच्चा-बच्चा दोनों का जीवन संकटमय हो जाता है।
अंत में, पादप्रक्षालन रक्षोध्न इत्यादि सूक्तियों द्वारा हमारे पूर्वज हमें निर्देश देते हैं कि हाथ-पैर, मुखादि धोकर भोजन करना, एकांत में भोजन, दूसरों के वस्त्रादि को धारण न करना, ऋतुकाल में स्त्री से सर्वथा पृथक् रहना, होली-दीपावली को हवन करना, दीपावली पर घरों की सफाई करना, दीप जलाना, घर में धूप देना इत्यादि कर्म हमें सदैव व्यवहार में लाना चाहिए ताकि जीवाणुओं के आक्रमण से हम सुरक्षित रह सकें।
¤ ¤ उमेश पाण्डे
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