व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
परीक्षा
एक बार राजा भोज और पण्डित प्रवर माघ घूमते हुए उज्जयिनी से बहुत दूर जा निकले। लौटते समय उन्हें मार्ग का स्मरण न रहा। भटकते-भटकते बे एक झोपड़ी के पास पहुँच गये। झोपड़ी की स्वामिनी से उन्होंने पूछा- ''माँ, यह मार्ग कहाँ जाता है?''
वृद्धा दोनों व्यक्तियों को ध्यान से देखती हुई बोली, 'यह रास्ता तो कहीं नही जाता। हाँ, इस पर लोग आया-जाया करते हैं। आप लोग कौन हैं?''
माघ बोले, ''हम यात्री हैं।''
''यात्री'' वृद्धा बोली। 'यात्री तो सिर्फ दो हैं- सूर्य और चन्द्रमा। आप यात्री कैसे हैं? सच-सच बताइए, आप लोग कौन हैं?''
''हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं” - माघ ने सतर्कता से कहा।
''क्षणभंगुर मनुष्य? संसार में क्षणभंगुर तो बस दो ही वस्तुएँ हैं- यौवन और बन।''
माघ कुछ पराजित से दिख पड़े। फिर बोले, “हम राजा हैं।''
“राजा भी सिर्फ दो ही हैं- 'इन्द्र और यम', आप राजा कैसे हुए?''
माघ ने देखा, इस वृद्धा का ज्ञान साधारण नहीं है। सँभलकर बोले, ''हम क्षमावान हैं।”
“क्षमावान तो सिर्फ एक पृथ्वी है, दूसरी नारी है और आप इन दोनों में से कोई नहीं हैं।“
माघ कुछ घबराए फिर भी संयत स्वर में बोले- ''हम परदेरशी हैं।“
“असम्भव- परदेसी सिर्फ दो हैं- एक जीवन और दूसरा वृक्ष के पत्ते।''
राजा भोज ने पूर्ण पराजय से अपना सिर झुका लिया और अपने आपको अज्ञानी स्वीकार करते हुए बोले- ''माँ हम हार गये।''
माँ ने इसे भी स्वीकार नहीं किया। बोली, “हारे हुए व्यक्ति सिर्फ दो हैं- एक कर्जदार, दूसरा लड़की का पिता। सच-सच बताइए आप कौन हैं?''
राजा भोज और माघ पण्डित चुपचाप खड़े हो गये।
वृद्धा अब मुस्कराई- ''आप राजा भोज हैं, आप पण्डित माघ। यह राह सीधी उज्जयिनी को जाती है।”
¤ ¤ सौरभ बड़जात्या
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