जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
माँ के पास
कानपुर के एक घर में माता जगरानी देवी उदास बैठी थी। उनके मन में चिन्ता
लगी हुई थी, ''दस-बारह दिन से चन्द्रशेखर नहीं आया, क्या बात है? उसके
पिता को स्वर्ग सिधारे हुए दो वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, तब से ही मैं यहां
आकर रहने लगी हूँ। चन्द्रशेखर मेरे पास कभी एक रात से अधिक टिकता ही नहीं
है। कभी-कमी तो हफ्तों तक उसका मुंह देखने के लिए तरसती रहती हूँ। सुना
है, वह अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध, देश-सेवा में लगा हुआ है। अंग्रेज बडे
निर्दयी हैं, वह विरोध करने वालों को गोली से उड़ा देते हैं। भगवान मेरे
बच्चे की रक्षा करना!''
तभी अपने दो साथियों सहित चन्द्रशेखर आ गए, 'माँ, बड़ी भूख लगी है, कुछ खाने को दो!''
अपने प्यारे पुत्र को देखते ही मां का रोम-रोम खिल उठा, वह बोली, ''मैं खाना अभी बनाती हूँ, तब तक तुम लोग पेड़े खाओ।''
''तुझे पेड़े बहुत अच्छे लगते हैं, इसलिए कई रोज पहले ही मैंने एक सेर पेड़े लाकर रख लिए थे। रोज तेरा इन्तजार करती थी, अब तू आ गया, अपने साथियों सहित पहले पेड़े समाप्त करो।''
तीनों साथी पेड़े खाने के बाद पानी पीकर सो गए। माँ खाना बनाती रही। आज उन्होंने तरह-तरह के साग, पूड़ी हलुआ सभी कुछ बनाया था। वे सोच रही थीं, 'न जाने चन्द्रशेखर ने कब से अच्छा खाना नहीं खाया है।'
माँ के जगाने पर तीनों उठे, स्नान किया और खाना खाकर फिर चलने के लिए तैयार हो गए। मानो यह उनका घर ही नहीं था। वे किसी धर्मशाला में कुछ देर के लिए विश्राम करने आये थे। उन्हें तैयार देखकर माँ से चुप न रहा गया, उनका गला भर आया। वे बोलीं, ''चन्द्रशेखर ! क्या तू कुछ दिन भी यहाँ नहीं रुकेगा?''
''नहीं माँ, मुझे बहुत जरूरी काम है।''
''काम! काम तो लगे ही रहते हैं। क्या तुझे मां की ममता का तनिक भी ख्याल नहीं है? ''
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