Kranti Ka Devta : Chandrashekhar Azad - Hindi book by - Jagannath Mishra - क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद - जगन्नाथ मिश्रा
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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''माँ की ममता के लिए ही तो मैं यह सब कुछ कर रहा हूँ। माता दुःख उठाये और पुत्र देखता रहे, धिक्कार है ऐसे पुत्र को।'' चन्द्रशेखर की बात माता को समझ में नहीं आई। वह सोचने लगीं, 'यह मुझे कौन-सा सुख दे रहा है?' उसने कहा, ''मेरे लाल! मेरा सुख तो इसी में है कि तू मेरी आँखों के सामने रहे।''

 ''मां तुम्हारा यह सुख झूठा है। आज तेंतीस करोड़ पुत्रों की माँ, भारत माता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई है। उसके पुत्र निकम्मे हो रहे हैं। वह मेरी, तुम्हारी, इस देश में बसने वालों की, सभी की माँ है। मुझसे उसका दुःख देखा नहीं जाता।''

''बेटा! तू उसके दुःख को किस तरह दूर करेगा?''

''अत्याचारी अंग्रेज शासकों को इस देश से बाहर निकाल कर।''

यह बात सुनकर माँ का हृदय काँप उठा। वे डरे हुए शब्दों में बोलीं, ''बेटा! ऐसी बातें न कर। अंग्रेज बड़े निर्दयी हैं। ऐसा न हो, वे कहीं तेरा अनिष्ट करने की ठान लें।''

''आश्चर्य है माँ! तुम चन्द्रशेखर की माँ होकर ऐसी कायरता की बात कर रही हो! अंग्रेज़ एक चन्द्रशेखर का अनिष्ट करके क्या कर लेंगे, देश में तेंतीस करोड़ चन्द्रशेखर हैं। अगर चन्द्रशेखर का खून हो गया तो वह उसके दूसरे साथियों को प्रोत्साहित करेगा, देश में क्रान्ति की लहर आ जाएगी और अंग्रेजों का विनाश कर डालेगी।''

''बेटा! तुम्हारी आयु अभी इन कामों के लिए नहीं है। अपने देश के बड़े-बड़े नेताओं, महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय की ओर देखो, पहले इन लोगों ने शिक्षा प्राप्त की है, फिर देश-सेवा में लगे हैं।''

''आज हमारे देश की शिक्षा गुलामी को प्रोत्साहन देनेवाली है। इसलिए इस शिक्षा से कोई लाभ नहीं। फिर समय और परिस्थिति के अनुसार ही सब कार्य करने चाहिये। जिस समय इन लोगों ने शिक्षा प्राप्त की थी उस समय देश में इतनी जाग्रति नहीं थी। आज देश जाग रहा है, अब देशवासियों का मुख्य उद्देश्य गुलामी की जंजीरें तोडना है।''

''इतनी बड़ी सरकार के सामने तुम मुट्ठी भर नौजवान क्या कर सकोगे?''

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