जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
दिल्ली में
मथुरा रोड पर दिल्ली में पुराना किला है, जो बहुत दिनों से जीर्णावस्था
में पड़ा है। अब उसके एक भाग में भारत सरकार ने चिड़ियाघर बनवा दिया है।
उन दिनों इधर कोई आता-जाता नहीं था। आसपास आबादी का नाम-निशान नहीं था। इस
किले के खण्डहरों में भारत के कोने-कोने से आकर क्रांतिकारी वीर जमा हुए
और एक सभा की गई।
सबसे पहले अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और उनके साथियों को श्रद्धांजलि दी गई। फिर सबने देश-सेवा और ब्रिटिश सरकार का तख्ता पटलने की शपथ ग्रहण की। चन्द्रशेखर आजाद को दल का सबसे वड़ा नेता चुना गया। कई लोगों के भाषण हुए। बडे तर्क-वितर्कों के बाद भविष्य की नीति और कार्यक्रम निश्चित करके सब लोग अपने-अपने अड्डों को वापस चले गए। सरकार ने एक पुलिस अफसर तसद्दुक हुसैन को विशेष रूप से चन्द्रशेखर आजाद को पकड़ने के लिए निय्रुक्त कर रखा था। वह भी क्रान्तिकारियों के विरुद्ध बहुत से प्रमाण इकट्ठे करने में लगा हुआ था और दिन-रात आजाद की खोज में रहता था।
आजाद ने सोचा कि इस अफसर को गोली मार कर समाप्त ही कर दिया जाए। फिर बाद में उन्हें विचार आया, इसके मारने से कोई विशेष लाभ तो होगा नहीं, व्यर्थ में दो-चार आदमी पकड़ कर फाँसी पर लटका दिये जायेंगे। इसलिए उन्होंने उसे जान से मारने का विचार छोड़ दिया। किन्तु वह तो आजाद के पीछे छाया की तरह घूमने लगा। यह देखकर एक दिन आजाद उसके सामने आ गए और पिस्तौल निकालकर उनके सीने पर रखते हुए बोले, 'बता, क्या चाहता है?''
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