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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


सेठ के घर


सेठ दिलसुख राय का आलीशान मकान था। रात के आठ बजे सेठजी बड़े सुन्दर ढंग से सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठे थे। पास ही मुनीमजी बहीखाता देखते हुए मोटी रकम का हिसाब समझा रहे थे। बाहर से कल्लू चौकीदार भागा हुआ आया, उसकी साँस फूल रही थी। वह बोला, ''सेठजी! बाहर एक साहब खड़े हुए हैं, वह आपसे मिलना चाहते हैं।''

''मुनीमजी। तनिक बाहर जाकर देखिए कौन साहब रात को मिलने आए हैं?'' सेठजी ने कहा।

मुनीमजी ने बाहर आकर देखा एक साहब अंग्रेजी वेशभूषा से सुसज्जित बाहर खड़े थे। मुनीमजी ने हाथ जोड़कर नमस्कार की, पूछा, ''हुजूर कहाँ से आ रहे हैं और सेठजी से क्या काम है? ''

''हम गवर्नर साहब का पी०ए० है, लखनऊ से आया है, और सेठजी से मिलना माँगता। जल्दी बुलाओ!''

मुनीमजी अपनी धोती सम्हालते हुए भीतर भागे और सेठजी से बोले, ''लाट साहब के यहाँ का कोई बहुत बड़ा अफसर लखनऊ से आया है और आप से अभी मिलना चाहता है।''

लाट साहब का नाम सुनकर सेठजी भी घबरा गए। बाहर दौड़कर साहब को झुककर सलाम किया और बोले, ''आइए हुजूर! अन्दर आइए। इतनी रात को सरकार ने कैसे तकलीफ की? मुझे वहीं बुलवा लेते, मैं आपकी सेवा में वहीं पहुँच जाता।''

भीतर जाकर साहब तो सोफा पर बैठ गए। सेठजी और मुनीमजी हाथ जोड़े हुए सामने खड़े रहे।

''सेठ डिलसुक राय, आपका नाम?'' साहब ने पूछा।

''जी सरकार, मेरा ही नाम है।''

'हम आपका बही-खाता देखना माँगता।''

''क्या हजूर इन्कम टैक्स आफीसर हैं? ''

''नहीं, हम गवर्नर साहब का पी०ए० है। तुमको मालूम, अभी कुछ दिन हुआ हमारी अंग्रेजी सरकार का जर्मनी से लड़ाई खतम हुआ है।''

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