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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''जी हजूर! उसमें हमारी अंग्रेजी सरकार की जीत हुई।''  

''हाँ! सरकार को लड़ाई जीतने में बहुत-सा रुपया खर्च करना पड़ा है। सरकार का खजाना खाली हो गया है। आज सुबह ही गवर्नर साहब के पास इंग्लैण्ड से एम्परर 'जार्ज फिफ्थ' का तार आया है। हिन्दुस्तान में सेठ, साहूकार और रईसों से चन्दा वसूल करो।''

''जी।''  

''चन्दा इन्कम टैक्स के मुताबिक वसूल किया जायेगा। इसलिए हम बही-खाता देखना मांगता।''

''हजूर बही-खाता देखकर ही क्या करेंगे। बेकार तकलीफ क्यों करते हैं। वैसे ही फरमा दें मुझे कितना रुपया देना है?'

''बाहर हमारा चपरासी और क्लर्क खड़ा होगा, उन्हें बुलाओ।''

मुनीमजी दौड़कर दोनों को बुला लाए। साहब ने क्लर्क से पूछा, ''सेठ जी से कितना रुपया लेना होगा?''

कलर्क ने फाइल इधर-उधर पलट कर दो-चार दफे देखी फिर बोला, ''कम से कम पच्चीस हजार।''

पच्चीस हजार का नाम सुनकर सेठजी के पैरों तले से जमीन खिसक गई! हाथ जोड़कर बोले, ''सरकार यह तो बहुत अधिक है।''

''बहुत नही हैं। लड़ाई के दिनों में तुमने सरकार को रुपया देकर बहुत मदद किया है। सरकार तुमसे बहुत खुश है, अगले महीने में तुमको राय बहादुर का खिताब देना चाहती है।''

राय बहादुर के खिताब वाली बात सुनकर सेठजी की बाछें खिल गईं। कुछ मुस्कराकर बोले, ''अच्छा तो सरकार अभी या कल सवेरे?''

''नहीं, अभी दो। हम को बहुत काम करना है।'' इसके वाद क्लर्क की ओर देखकर बोले, ''बाबू ! सेठ जी का पच्चीस हजार का रसीद काटो और नाम नोट कर लो, अगले महीने में इन्हें राय बहादुर का खिताब सरकार से दिलवाया जायेगा।''

''बहुत अच्छा हजूर।'' क्लर्क ने कहा और रसीद बना दी। सेठजी ने मुनीमजी की ओर देखकर कहा, ''मुनीमजी! साहब को रुपया देना तो है ही, चलो अभी दे दो, जैसी साहब की इच्छा।''

''हाँ सेठजी, साहब कहते हैं तो अभी दे दीजिए। अपने को आज या कल में क्या फर्क पड़ता है?'' मुनीमजी ने सेठजी की हाँ में हाँ मिलाई।

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