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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

जलूस स्टेशन की ओर बढा। इस अपार जन-समूह के लहराते सागर को देखकर नौकरशाही के छक्के छूट गए। बहुत बड़ी संख्या में पुलिसवालों ने आकर उसे रोका और लोगों को तितर बितर हो जाने की आज्ञा दी। किन्तु पुलिस के बार-बार कहने पर भी कोई अपने स्थान से न हटा, सब वहीं के वहीं डटे खड़े रहे। अन्त में नौकरशाही के अत्याचारी पिट्ठू अपनी करतूत दिखाने पर तुल गए। उन्होंने उन निहत्थे स्त्री-पुरुषों पर लाठियाँ बरसाना आरम्भ कर दिया, हजारों के सिर फूटे, हाथ-पैरों में चोट आई। अनेकों बेहोश होकर गिर पड़े। पंजाब केसरी के सिर पर लगातार कई लाठियाँ पड़ीं। उनके गहरी चोटें आई। कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद, पश्चिमी भारत का वह हृदय-सम्राट संसार से चल बसा।

पंजाब केसरी की मृत्यु से सारा देश रो पड़ा। क्रान्तिकारियों के हृदय में तो प्रतिहिंसा की ज्वाला धधक उठी। चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगतसिंह, राजगुरु और जयगोपाल ने अपने प्रिय नेता की मृत्यु का बदला लेने की शपथ खाई। वे लोग अपने-अपने हाथों में पिस्तौल लेकर निकल पड़े और पुलिस के उस अंग्रेज अफसर सांडर्स की खोज में चल पड़े जिसके डंडे की करारी मार से 'पंजाब केसरी' के सिर में गहरी चोट आई थी।

सांडर्स अपने बंगले से निकला और कहीं जाने के लिए मोटर साइकल पर बैठा ही था कि एकदम धाँय-धॉय करती हुई चार गोलियाँ चलीं, सांडर्स की जगह सांडर्स का शव पृथ्वी पर लुढ़क गया था। अन्त में नये खून ने, खून का बदला खून से ले ही लिया।

अपने अफसर की हत्या देखकर सांडर्स का चपरासी क्रोध में पड़कर आगे बढ़ा और उन्हें पकडने के लिए शोर मचाने लगा। उन्होंने उसे इशारा किया, चुप रहो और अलग हट जाओ, नहीं तो तुम्हारा भी वही हाल होगा। किन्तु वह नहीं माना। उनमें से किसी एक को पकड़ने के लिए आगे ही बढ़ता चला गया। एक गोली ने उसको भी उसके अफसर के साथ ही संसार से विदा कर दिया।

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