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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


असेम्बली में


अंग्रेज केवल कठोर शासक ही नहीं थे, उनकी नीति भी पूँजीपतियों की नीति थी। वे भारतवासियों को धीरे-धीरे इस तरह से चूस रहे थे जैसे जोंक शरीर से खून चूस लेती है। उनकी इस कुनीति से मजदूरों को पेट भरने के लिए अनाज और तन ढकने के लिए कपड़ा तक नहीं मिलता था। बम्बई में मजदूर अपनी इस न्यायोचित-मांग के लिए हड़ताल करना चाहते थे। किन्तु अंग्रेजी सरकार को उनसे कोई सहानुभूति नहीं थी। वह तो पूंजीपतियों की सरकार थी। उसे तो उन्हीं के दिल की बात सोचना थी। इसलिए मजदूरों को दबाने और उनकी हड़ताल रोकने के लिए  'पब्लिक सेफ्टी बिल' के नाम से एक कानून बनाने को सोचा गया। यह बिल असेम्बली में पास होने जा रहा था।

जैसे ही मजदूरों को इस बिल के बारे में मालुम हुआ, वे त्राहि-त्राहि कर उठे। क्रान्तिकारियों के हृदय उनकी पुकार से पसीज उठे। उन्होंने इस बिल का पूर्ण विरोध करने का निश्चय कर लिया।

9 अप्रैल 1929 को यह बिल पास होने के लिये असेम्बली में रखा जाने वाला था। उसी दिन सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त किसी तरह असेम्बली भवन की गैलरी में जा पहुंचे।

जैसे ही बिल का पढ़ा जाना आरम्भ हुआ उन्होंने खाली बैंचों पर बम फेंककर सबका ध्यान अपना ओर आकर्षित किया और ऊपर से परचे फेंकना आरम्भ कर दिया - जिन पर लिखा था,  'हम सभी भारतवासी अन्याय से भरे इस 'पब्लिक सेफ्टी बिल' का विरोध करते हैं। हम बम्बई नगर के अपने मजदूर भाइयों पर अत्याचार नहीं होने देंगे।'

इतने में पुलिस वहाँ आ गई। उसने दोनों के हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं। इस तरह भारत के दो शेरों ने अपने-आपको स्वयं ही पिजरे में बन्द करा दिया।

इस बार भी पुलिस में फिर से नया जोश उत्पन्न हुआ। उसने पंजाब और उत्तर प्रदेश में जगह-जगह क्रान्तिकारियों के ठिकानों पर छापे मारे। हजारों युवकों को जेल में ठूंस दिया गया।

प्रमुख-प्रमुख क्रान्तिकारी भी पुलिस के हाथों में आ गए। केवल चन्द्रशेखर आजाद को वह नहीं पकड़ सकी।

पुलिस ने कई-कई मुकदमे इन लोगों के विरुद्ध चलाये। बटुकेश्वर दत्त और कुछ अन्य साथियों को काला पानी हुआ। सरदार भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा हुई।

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