जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
निराशा में आशा
यमुना नदी मन्द गति से बह रही थी। दोनों ओर किनारों पर दूर-दूर हरे-भरे
पीली सरसों के खेत लहलहा रहे थे। चमकदार धूप में हवा से लहराते हुए सरसों
के पीले फूलों को देखकर ऐसा मालूम पड़ता था मानो सोने के समुद्र में लहरें
उठ रही हैं। खेतों में काम करते हुए किसानों के मस्ती भरे फाग कहीं-कहीं
वायुमंडल में गूंज उठते थे। स्त्रियाँ और बच्चे साग खोंट रहे थे। मधु-
मक्खियाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों से रस लेने में मग्न थीँ। वृक्षों
पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं।
ऐसे आनन्दमय वातावरण में भी चन्द्रशेखर आजाद बड़े चिन्तित-से यमुना के किनारे बैठे हुए सोच रहे थे, ''भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी का दण्ड सुनाया गया है। बटुकेश्वर दत्त और अन्य साथी जीवन भर का कालापानी भोगेंगे। क्या वीरों की जननी भारत माता अब निपूती होकर ही रहेगी? कैसे-कैसे वीर इस आजादी की भेंट चढ़ चुके हैं, किन्तु आजादी ही नहीं मिल पा रही है।''
''काकोरी केस के बाद जव श्री रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ आदि साथियों को फाँसी के तख्ते पर लटकाया गया था तो मेरा हृदय काँप उठा था। मैं निराश होकर सब कुछ भूल बैठा था। किन्तु पूज्य गुरुदेव वीर सावरकर जी के साहस दिलाने से जीवन में नई स्फूर्ति उत्पन्न हो गई थी। फिर सरदार भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु जैसे वीर साथी भी मुझे मिल गये। हमारा कार्यक्रम जो श्री बिस्मिल के बाद मन्द पड़ गया था, फिर दुगने उत्साह से चल पड़ा।''
''अब इन साथियों के बिना क्या होगा? क्या रामप्रसाद बिस्मिल और सरदार भगतसिंह जैसे वीर कहीं ढूंढने से मिल सकेंगे? क्या भारत माता ऐसे वीर सपूतों को खोकर भी परतन्त्रता की बेड़ियों में ही जकड़ी रहेगी?''
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