जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
बेंतों का दंड
उन दिनों काशी में, खेरफाट नाम का एक पारसी मजिस्ट्रेट था। वह अपनी कठोरता
के लिए बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।
दूसरे दिन चन्द्रशेखर को उसी की अदालत में ले जाया गया।
एक सुन्दर, सुगठित शरीर वाले नवजवान लड़के को अपराधी के रूप में देखकर, उस निर्दयी मजिस्ट्रेट के ह्दय में भी कुछ दया आ गई। उसने चन्द्रशेखर से साधारण रूप में पूछा, ''तुम्हारा नाम क्या है?''
''आजाद'' चन्द्रशेखर ने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया।
''पिता का नाम।''
''स्वतन्त्र''
मजिस्ट्रेट इन उत्तरों को सुनकर आश्चर्य से देखता रह गया। उपने तीसरी बार प्रश्न किया, ''तुम्हारा घर कहाँ है?''
''जेलखाना।''
इस उत्तर से वह बहुत बुरी तरह जल-भुन गया। उसने चिढ़कर चन्द्रशेखर को पन्द्रह बेंतों का कठोर दण्ड दिया।
बेंतों का दण्ड बड़ा भयानक होता है। जैसे ही जल्लाद, तेल में भीगा हुआ बेंत सजा पाने वाले के शरीर पर मारता है, शरीर की खाल बेंत के साथ लिपटकर उधड़ी चली आती है। बडे-बड़े धीर पुरुष भी इस सजा के आगे पानी माँगने लगते हैं। एक ही बेंत पड़ते ही रोने-चिल्लाने लगते हैं।
उन दिनों बनारस का जेलर सरदार गड़ासिंह था। वह भी बड़ा कठोर और निर्दयी था। बड़े से बड़ा कैदी भी उसके नाम से काँपने लगता था।
चन्द्रशेखर को गड़ासिंह के सामने लाया गया। केवल एक लंगोट छोड़कर, उनके सारे कपड़े उतरवा लिये गए। फिर उसके नंगे शरीर पर, बेंत लगाने से पहले लगाई जाने वाली दवा लगाकर उन्हें टिकटिकी पर बाँधा गया। किन्तु वीर चन्द्रशेखर बिना किसा भय के मुस्करा रहे थे। जेलर उन्हें मुस्कराता देखकर अपने मन में सोच रहा था - एक दो बेंत पड़ते ही बुद्धि ठिकाने आ जाएगी और सारी हेकड़ी भूल जायेगा।
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