लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

जेलर ने जल्लाद को बेंत लगाने की आज्ञा देकर गिनना आरम्भ किया, ''एक!''

जल्लाद ने लपलपाता बेंत चन्द्रशेखर के पीठ पर सटाक से दे मारा। बेंत पडने की आवाज के साथ ही वीर चन्द्रशेखर आजाद के मुँह से निकला ''भारत माता की जय!''

पहले बेंत ने ही पीठ की चमड़ी बुरी तरह उधेड़ दी। किन्तु उस वीर ने रोना-चिल्लाना तो बहुत दूर, किसी तरह की आह तक न की।

जेलर ने कड़ी आवाज में कहा, ''दो!''

जल्लाद ने इस बार पूरी शक्ति लगाकर बेंत मारा। उधर बेंत की आवाज हुई, इधर वीर ने चिल्लाकर कहा, ''भारत माता की जय!''

पीठ की चमड़ी उधड़ गई थी। खून बुरी तरह बह रहा था। फिर भी वीर आजाद के चेहरे पर कोई सिकुड़न तक न थी। वह जल्लादों का जल्लाद निर्दयी जेलर भी आजाद के साहस को देखकर दाँतों तले अंगुली दबा गया।

उसने चिल्लाकर तीसरी बार कहा, ''तीन!''

जल्लाद ने और भी अधिक शक्ति लगाकर बेंत मारा। फिर भी साहस और वीरता की सजीव मूर्ति. चन्द्रशेखर आजाद के मुंह से 'भारत माता की जय'' ही निकली।

इस तीसरे बेंत के लगने से उनके पीठ पर बड़े-बड़े घाव हो गए थे। कई जगह का माँस निकल आया था। तब भी वह आजादी का दीवाना आजाद शान्त ही था।

जल्लाद और जल्लादों के सरदार ने अपनी करनी में कोई कसर नहीं रखी। शेष बारह बेंत भी कस-कसकर लगाए गए। सटाक्-सटाक् बेंत पड़ रहे थे। हर बेंत की आवाज के साथ-साथ ही आजाद की आवाज भी जेल की दीवारों में गूंज जाती थी,  'भारत माता की जय!'।

सारा शरीर लहू-लुहान हो रहा था। चमड़ी उधड़ गई थी। कइ जगहों से मांस के चीथड़े निकल आये। किन्तु भारत माता के उस सच्चे सपूत का चेहरा तनिक भी उदास न था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book