जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
उसके बाद तख्ता हटा, फाँसी का फन्दा कसता चला गया। श्री बिस्मिल झूलकर अमर शहीद हो गए। फिर अशफाकउल्ला खाँ और उनके दो साथियों का भी बारी-बारी से वही अन्त हुआ जो होना था। मातृभूमि की बलिवेदी पर चार पुष्प चढ़ा दिये गए थे।
यद्यपि उस 25 अगस्त की गिरफ्तारियों के बाद, आजाद चाहते थे कि जिस तरह भी हो, उस तरह से अपने प्रमुख-प्रमुख साथियों को जेल से बाहर निकाल लिया जाए। किंतु रामप्रसाद बिस्मिल के बाद दल का जो नेता चुना गया वह इतना कायर और आलसी था कि हर कार्य को टालते-टालते महीनों बिता देता था। इस तरह वे लोग कुछ भी न कर पाए और आजाद की बात मन की मन में ही रह गई।
उधर पुलिस ने यह घोषणा कर दी, 'जो व्यक्ति चन्द्रशेखर आजाद का सही पता वतायेगा उसे बहुत इनाम दिया जायेगा। इन सब बातों से आजाद का जी ऊब उठा। वह झाँसी के पास बुन्देलखण्ड के जंगलों से आकर रहने लगे और दिन-रात निशाने-बाजी का अभ्यास करने लगे।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह चाहे जिस दशा में हो, उसे मनुष्यों का साथ अवश्य चाहिये। आजाद का भी जगत में अकेले रहते-रहते जी उभार खा गया। वहीं पास में एक टिमरपुरा नाम का एक गाँव था। वह ब्रह्मचारी का भेष बनाकर वहाँ पहुंचे और झोपड़ी डाल कर गाँव के बाहर रहने लगे।
हमारे देश में साधू-संतों की बहुत पूजा होती है। आजाद को ब्रह्मचारी के भेष में देखकर लोगों ने समझा कि यह कोई बहुत पहुंचा हुआ साधू है। अब तो वहाँ स्त्री व पुरुषों की भीड़ आने लगी। किन्तु आजाद ने उन सबसे हाथ जोड़कर कहा, 'माताओं व भाइयो ! मैं कोई साधू या महात्मा नहीं हूं। इसलिए आप लोग यहां आकर अपना व मेरा समय नष्ट न करें।''
लोग फिर भी न माने। उन्हें जितना मना किया जाता, वे उतनी ही अधिक संख्या में वहाँ जमा होते। अन्त में वह तंग आकर गाँव के जमींदार के पास गए और उनसे प्रार्थना की, ''मैं एक ब्रह्मचारी हूँ, मेरा नाम हरिशंकर है। मुझे रहने के लिए कोई ऐसा स्थान दें दिया जाये, जहाँ स्त्री-पुरुष आकर व्यर्थ ही तंग न करें!''
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