जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
जमींदार उनकी बातचीत, व्यक्तित्व और उज्ज्वल चरित्र से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने प्रसन्न होकर अपने घर में ही उन्हें रहने का स्थान बता दिया और सारी व्यवस्था कर दी। यह घर में कहीं भी आ-जा सकते थे। उनका उन पर इतना अटूट विश्वास था कि अपनी सब बन्दूकें, पिस्तौलें और कारतूस उन्हीं के सुपुर्द कर दिए। क़ुछ दिनों बाद उन्होंने अपने कुछ साथियों को भी वहाँ बुला लिया और जंगल में आकर तरह-तरह की निशाने-बाजियों का नित्य अभ्यास करने लगे। जमींदार भी इनके साथ निशानेबाजी में रुचि लेते और शिकार खेलने जाया करते थे। यहीं आजाद ने मोटर ड्राइवरी भी सीख ली।
उन दिनों उत्तर प्रदेश की पुलिस पूरी शक्ति लगाकर बड़ी दृढता से आजाद की-ही खोज कर रही थी। जगह-जगह गुप्तचर विभाग का जाल-सा बिछा हुआ था। एक दिन पुलिस के कुछ आदमी किसी काम से टिमरपुरा गांव में आये। उधर आजाद जंगल से निशानेबाजी का अम्यास करके लौट रहे थे। पुलिस वालों में से एक ने उनकी ओर संदेह भरी दृष्टि से देखा। उस समय तो टाल गये। किन्तु बाद में उन्होंने सोचा, ऐसा न हो कि अपने उपकार करनेवाले जमींदार पर किसी तरह की कोई आंच आ जाए। इसलिए उन्होंने अपने साथियों को वहाँ से अन्यत्र भेज दिया।
स्वयं पुलिस की दृष्टि से बचकर बम्बई भाग गये।
बम्बई जैसे विशाल नगर में घूमते-फिरते कई दिन बीत गए, जीवन-यापन का कोई सहारा दिखाई न पडा। अन्त में विवश होकर जहाज का बोझा ढोने वाले कुलियों में भरती हो गए। दिन भर बोझा ढोकर नौ आने पैसे रोज कमाते थे। शाम को रात के बारह बजे तक सिनेमा देखते फिर जहाज के गोदाम के वाहर सो जाते।
जिन दिनों आजाद उत्तर प्रदेश से बम्बई आए थे, उन दिनों क्रान्तिकारियों पर मुकदमा चल रहा था किन्तु दो वर्ष बाद बम्बई में अपने चार साथियों को फाँसी पर चढ़ाये जाने का समाचार पढ़कर उनका कलेजा काँप गया। कुछ दिनों तक उनसे कुछ भी करते-धरते न बना।
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