जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
इसी बीच एक लम्बा, गोरा-चिट्टा जवान वहाँ आया। उसके छोटी-छोटी तनी हुई मूंर्छे, खुले कालर की कमीज और सिर पर फैल्ट हैट था। इस फैशन मेँ उसका व्यक्तित्व निखरा पड़ रहा था। उसने सावरकर जी को प्रणाम किया।
''भगतसिंह तुम ठीक अवसर पर आये।''
''गुरुदेव। मेरे लिए कोई सेवा?''
''सेवा कुछ नहीं। तुम चन्द्रशेखर आजाद से मिलो।'' यह कह कर उन्होंने भगतसिंह का परिचय आजाद से कराया। वे एक दूसरे के नाम से तो परिचित थे किन्तु मिलने का अवसर कभी नहीं आया था। आज दोनों ही आपस में गले मिलकर बड़े प्रसन्न हुए।
''चन्द्रशेखर, रामप्रमाद बिस्मिल को फाँसी लग जाने से बड़ा निराश-सा हो रहा है। अब तुम दोनों मिलकर दल का कार्य करो।'' सावरकर जी ने कहा।
''जैसी आपकी आज्ञा।'' भगतसिंह ने उतर दिया।
इसके बाद बहुत देर तक वीर सावरकर जी, चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह में, भविष्य की योजनाओं पर बातचीत होती रही, आजाद को आज की बातों से बहुत प्रोत्साहन मिला। वे भगतसिंह को साथ लेकर वहाँ से चल दिए।
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