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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

जिस प्रकार आधुनिक हिन्दी साहित्य में पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी युग प्रसिद्ध है उसी तरह भारतीय क्रान्तिकारी इतिहास में वीर विनायक दामोदर सावरकर युग का नाम आता है। क्रान्तिकारियों में शिरोमणि वीर सावरकर के नाम से अंग्रेज काँप जाते थे। कई बार उन्हें देश निकाला और कालेपानी की सजायें दी गईं, फिर भी उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। उन्हीं के प्रयत्न से देश में क्रान्ति की भावना बलवती हुई और लाखों क्रान्तिकारी उत्पन्न हो गए।

सभी क्रान्तिकारी उन्हें अपना गुरू मानते थे। आजाद अपने मन की स्थिति डांवाडोल देखकर वीर सावरकर के पास पहुँचे और उन्हें सारा हाल कह सुनाया।

''केवल इतनी-सी बात से तुम्हारा मन विचलित हो गया! '' सावरकर जी ने आजाद के ऊपर एक दृष्टि फेंकते हुए कहा।

''आप इसे छोटी-सी बात समझते हैं! रामप्रसाद बिस्मिल जैसै नेता और दल के प्रमुख कार्यकर्ताओं का अभाव कैसे पूरा हो सकता है?''

''यह सच है, सच्चे सहयोगी और कार्यकर्त्ता बड़ी कठिनाई से ही प्राप्त होते हैं किन्तु देश-सेवा में तो यह सबकुछ सहन करना ही पड़ता है। बडे-बडे बलिदान देने पड़ते हैं। इनसे घबराना नहीं चाहिये। सहयोगी और कार्यकर्ता उत्पन्न नहीं होते, बनाये जाते हैं। क्या तुम रामप्रसाद 'बिस्मिल' से किसी तरह कम भी हो। कार्य करने की सच्ची लगन और दृढ़ता मनुष्य को सब कुछ कर सकने की शक्ति प्रदान करती है।''

''अब तो फिर नये सिरे से संगठन करना पड़ेगा। इसमें वर्षों लग जायेंगे।''

''तो फिर क्या हुआ! स्वतंत्रता का संघर्ष कोई खेल नहीं है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी तक भी चल सकता है। हम भारतवासी भी आज से नहीं सन 1857 से भी पहले से इन अग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता का संघर्ष करते चले आ रहे हैं। हो सकता है, स्वतन्त्रता का मुँह हम-तुम न भी देख सकें, हमारी आने वाली पीढ़ी देखे। किन्तु हमारा कर्त्तव्य तो कर्म करना है। फलाफल अदृश्य के हाथ में है।''

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