जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
हो सकता है, जब भी अंग्रेज भारत में से जायें तो शासन की बागडोर इन अहिंसावादियों के ही हाथ में देकर जायें। किन्तु यह भी निश्चित है कि इससे पहले गौरांग लोगों के विरुद्ध एक सशस्त्र क्रान्ति भी अवश्य ही होगी। भले ही सरकार अपने अत्याचारों से उस क्रांति को उस समय दबा दे किन्तु उसके बाद अंग्रेजों का यहाँ रहना कठिन हो जायेगा और वे लोग घबराकर भारत से उखड़ जायेगे किन्तु...अब, अब क्या करना चाहिए?
सोचते-सोचते उनका ध्यान वर्तमान पर केन्द्रित हो गया, केवल अतीत को दुहराने या भविष्य की कोरी कल्पना से ही कोई काम सिद्ध नहीं होता। अतीत से केवल प्रेरणा लेकर वर्तमान में ऐसे कार्य करने चाहिये जिससे भविष्य शुभ फल देने वाला बन सके। हमारे दल के पिछले इतिहास से यही सिद्ध होता है कि हम लोगों में वीरता और त्याग की तो कोई कमी नहीं थी किन्तु हम लोग कूटनीतिज्ञ नहीं थे।
और वीरता भी कैसी? आवश्यकता से अधिक वीरता। अभी हाल में ही कितनी छोटी सी बात थी, केवल यह वतलाने के लिए कि हम मजदूरों के विरुद्ध पास होने वाले, 'पब्लिक सेफ्टी बिल' का विरोध करते हैं, भगतसिंह, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव ने अपने-आपको गिरफ्तार करा दिया। अब वे फाँसी के तख्ते पर झूलने वाले हैं।
इसका फल क्या हुआ? भविष्य की सारी योजनाएं विफल हो गईं। दल का कार्य बन्द हो गया। काकोरी केस से पहले, हमारे कुछ साथियों ने सरकार से सीधी टक्कर लेने के लिए ठीक ही मना किया था। उस समय श्री रामप्रसाद बिस्मिल नहीं माने। अब उसी तरह की जिद्द इन लोगों ने भी की और फल बुरा ही निकला।
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