जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
सचमुच ही इससे तो गांधी जी का मार्ग कहीं अधिक अच्छा है। उनका कार्य तो बन्द नहीं होता। भले ही सरकार सबको जेल में बन्द कर अपनी दमन नीति को प्रयोग में लाये। फिर भी जनता में उत्साह की कमी नहीं हो पाती।
अब तक मैं अहिंसा को कायरों का हथियार समझता रहा हूं। किन्तु आज मेरा मन इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि मन को वश में करना सबसे कठिन कार्य है, यह भी एक प्रकार की वीरता ही है। अहिंसा व्रत पालन करने के लिए सबसे पहले मन को ही वश में करना पड़ता है।
किन्तु मेरे लिए तो यह रास्ता बन्द ही हो चुका है। इस समय ब्रिटिश सरकार का सबसे बड़ा शत्रु मैं ही हूँ। उसने मेरी गिरफ्तारी के लिए दस हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया है। उसका वश चले तो वह मेरी बोटी-बोटी कटवाकर फिकवा इसके बाद सोचते सोचते उनका मस्तिप्क कुछ देर के लिए एक शून्य की अवस्था में रहा। फिर एकाएक विचार आते ही वह बड़बड़ा उठे, ''नहीं मेरे लिए अहिंसा का मार्ग उचित नहीं है। मैं इसे ग्रहण नहीं कर सकता। मेरा नाम आजाद है, मैं आजाद ही रहा हूं और सदैव आजाद ही रहूंगा। ब्रिटिश सरकार अपनी सारी शक्ति लगाकर भी मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर किसी तरह धोखा देकर ऐसा समय आया भी, तो सरकार मुझे नहीं, केवल मेरी लाश को ही गिरफ्तार कर सकेगी।''
''सरकार अपना काम करे, मुझे अपना कार्य करना चाहिए। भले ही आज उत्तरी भारत से हमारे दल का नाम मिट रहा है। जनता हमारा साथ देने में घबराती है। किन्तु दक्षिण में अभी बहुत क्षेत्र पड़ा है। वहाँ केवल किसी अच्छे संगठनकर्ता की आवश्यकता है। पूज्य सावरकर जी के आशीर्वाद से अवश्य सफलता मिलेगी।''
इसके बाद वे अपने हृदय में नया साहस और नई आशा लेकर वहाँ से चल दिये।
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