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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''मैं संसार में मुँह दिखलाने योग्य नहीं रहूंगा। सभी मुझसे घृणा करेंगे। मुझे देशद्रोही और विश्वासघाती कहकर पुकारेंगे।''

''इससे आप निश्चिन्त रहें, हम आपका नाम प्रकाश में नहीं आने देंगे। केवल हम जानेंगे या आप।''

यह कहकर पुलिस इन्सपैक्टर ने नोटों का बंडल तिवारी के सामने रख दिया और बोला, ''पांच हजार तो यह हैं, बाकी पांच हजार काम होने पर आपको मिल जायेंगे।''

लालच सब से बुरी बला है। यह जो भी पाप करा ले वही थोड़ा है। इसी के वशीभूत होकर भाई, भाई का गला काट डालता है। बाप, बेटे का सगा नहीं रहता। पत्नी, पति की हत्यारिणी बन जाती है। इसी कारण देशद्रोहियों ने देश को परतंत्रता की बेड़ियों से जकड़वा दिया। नोटों का बंडल देखकर तिवारी के मन में भी लालच छा गया। वह बनावटी इन्कार करते हुए बोला,  ''इन्सपैक्टर साहब! आप मुझे व्यर्थ ही विवश न कीजिए।'' इन्सपैक्टर भी समझ गया, चिड़िया जाल में आना ही चाहती है। वह बोला, ''आप मेरा कहना मानिये, आपका जीवन सुधर जाएगा।''

''किन्तु।''

''किन्तु-विन्तु क़ुछ नहीं। घबराइए नहीं, आपको कोई नहीं जानेगा। इन नोटों को सम्हालकर रखिये।''

''.... देखिये आप मुझे विवश कर रहे हैं।''

''अच्छा तो इस समय आप यही समझ लीजिये। अभी आप नहीं जानते, आपको इससे कितना बड़ा लाभ होगा? बाद में आप और आपके बाल-बच्चे मुझे हमेशा दुआयें देंगे।''

''वह क्या? ''

''दस हजार रुपये तो आपको मिलेंगे ही। साथ ही सरकार के वफादारों में आपका नाम लिख दिया जायेगा। इसके बल पर आपके वच्चों को बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियां मिल सकेंगी।''

''अच्छा आप नहीं मानते तो... '' यह कहकर तिवारी ने नोटों का बण्डल इस तरह उठाया मानो वह तो लेना चाहता ही नहीं, केवल पुलिस इन्सपैक्टर के बहुत विवश कर देने पर ही उसे उठाना पड़ रहा है।

''देखिये, किसी को मेरा नाम मालूम न हो।'' उसने आगे कहा।

''आप विश्वास रखिये, कोई नहीं जानेगा।''

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