जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
तिवारी ने नोटों का बण्डल अपनी जेब में रख लिया।
''अब आगे क्या करना होगा?'' इन्सपैक्टर ने पूछा।
''यही तो मैं भी सोच रहा हूं कि काम कैसे किया जाये! लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाये।''
''आजाद आजकल ठहरे कहां हैं?''
''वह गंगा पार झूंसी में रहते हैं।''
'क्या वहां पुलिस नहीं जा सकती?''
''नहीं। वहां पुलिस का घेरा सफल नहीं हो सकता।''
'क्यों? ''
''यह वह शेर नहीं है, जो खुले जंगल में आजाद रहकर मारा जा सके। उसके लिये तो पहले उसे जाल में फंसाना ही होगा।''
''वह आपसे कहां मिला करते हैं?''
''मैं जमना पार नैनी की ओर जाता हूं। वे संगम से आगे गंगा पार करके वहां आ जाते हैं।''
''क्या वह कभी शहर में नहीं आते?''
''कभी-कभी मेरे साथ ही आते हैं।''
''तो फिर ''
''कल सब ठीक हो जाएगा।''
दोनों बड़ी देर तक चुपके-चुपके सलाह करते रहे - योजनायें बनाते रहे।
''अच्छा तो कल सुबह निश्चित ही... '' इन्सपेक्टर ने कहा। ''हां, सुबह दस बजे, वहीं पार्क में... ''
''देखिए, वायदा पक्का होगा चाहिये। नहीं तो हम और आप दोनों ही कहीं के नहीं रहेंगे। झूठा वायदा सरकार के प्रति धोखा समझा जायेगा।''
''आप निश्चिन्त रहिये, जब सब बात तय हो गई तो वायदा भी पक्का ही है।''
इन्सपैक्टर ने तिवारी से हाथ मिलाया और भविष्य की योजनाओं पर विचार करता हुआ चलता बना।
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