लोगों की राय

उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

80 पाठक हैं

ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश ने क्रोधित आँखों से उसकी ओर देखते हुए कहा-क्यों?'

रमा ने दाँत भींच कर गुस्से से स्वर में कहा-'तुम्हें शर्म नहीं आती जो इतने आदमियों के बीच ऐसा कर रहे हो! मैं तो मारे शर्म के गड़ी जा रही हूँ।'

अब रमेश ने आँगन की तरफ उठ कर देखा और तुरंत ही भैरव को छोड़ दिया।

रमा ने अत्यंत कोमल सानुरोध स्वर में कहा-'तुम घर जाओ अब!'

रमेश बिना एक भी शब्द बोले वहाँ से चला गया, मानो एक जादू-सा हो गया। रमेश के जाने के पश्चाेत रमा के कहने पर इस तरह शांतिपूर्वक चले जाने के प्रति, भीड़ में एक-दूसरे की आँखें मूक आलोचना करने लगीं। मानो वे नहीं चाहते थे कि यह घटना इस तरह समाप्त होती!

धीरे-धीरे सभी लोग वहाँ से जाने लगे। गोविंद गांगुली ने खतरा टला देख निश्चिंेतता की साँस ले, भीड़ से निकल, गंभीर मुद्रा में उँगली नचाते हुए कहा, 'यह जो घर में आ कर वह भैरव को मार-मार कर अधमरा कर गया, इसके लिए क्या उपाय किया जाए, अब जरा इसका उपाय सोच लो!'

भैरव मुँह नीचा किए सिसक रहे थे। उन्होंने वेणी की तरफ दीनभाव से मुँह उठा कर देखा। रमा भी वहाँ मौजूद थी। वेणी का मंतव्य समझ कर बोली-'बड़े भैया! वैसी तो कोई विशेष बात हुई नहीं है, जिनके कारण मामले को तूल दिया जाए, और फिर इधर भी दोष तो कम नहीं है!'

वेणी ने आश्चार्यान्वित हो कर कहा-'यह तुम क्या कहती हो?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book