उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
सभी जानते हैं कि गोविंद की विधवा भौजाई का वेणी के साथ नाजायज संबंध है। पर उसका प्रेमी भी समाज का ठेकेदार है और उसका देवर भी! 'सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का'-आज भी उनके बीच नीच कर्म, समाज की छाती को रौंदकर अपनी ठेकेदारी की दुंदुभि बजा रहे हैं; ओर उनकी चहेती, समाज की छाती पर बैठी मूँग दल रही है।
इस समाज की चक्की ने नीचे अनेक निरपराध बे-मौत पिस कर चटनी बन गए, इन समाजपतियों के स्वार्थ के शिकार हो गए।
वही तस्वीर है, हमारे आज के समाज की और हिंदुत्व की!
रमा ने जब अपने कृत्य पर दृष्टिपात किया, तो भैरव के ऊपर गुस्से के बजाय अपने ऊपर ही उसे ग्लानि बढ़ गई। भैरव की लड़की की उम्र बारह वर्ष की होने को आई। यही है शादी की उमर! अगर उसकी शादी न हो सकी, इसी उमर में, तो फिर समाज के कुदाल से उसका बचना मुश्किल ही है!
समाज का यह विकराल रूप मनुष्य को क्या-क्या नहीं करने पर मजबूर कर डालता! नारी को समाज में अपने को असली कहने की वेदना से बचने के लिए समाजपतियों के हाथ अपनी लाज गिरवी रखनी पड़ती है; नर को न जाने कितने फरेब और धोखे का जीवन बिताना पड़ता है। जिस समाज के डर ने उसे झूठ बोलने पर विवश कर दिया, उसी के डर से यदि भैरव ने भी रमेश के साथ धोखा किया तो इसमें उनका दोष कैसे कहा जा सकता है?
उसी समय घर के सामने से एक वृद्ध सनातन हाजरा कहीं जा रहा था। गोविंद गांगुली ने बढ़ कर उसे पुकारा, मगर वह न आया, उसने उसकी खुशामद की और अंत में एक तरह से जबरदस्ती हाथ पकड़ कर, वेणी के सामने ला कर उसे खड़ा कर दिया।
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