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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास

14

वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी थी। बंगाल के ग्रामवासियों को एक तरफ दुर्गा पूजा का आगमन आनंदित कर रहा था, तो उसके साथ मलेरिया के आगमन का भय भी सबको व्याकुल बना रहा था। रमेश को भी इस मलेरिया का शिकार होना पड़ा था। गत वर्ष तो वे उसके चंगुल से बच गए थे, पर इस वर्ष उसने उन्हें धर दबाया था। तीन दिन के बाद आज उनका बुखार उतरा था। वे उठ कर खिड़की के सहारे खड़े हो कर सबेरे की धूप ले रहे थे, और मन-ही-मन सोच रहे थे कि गाँव के बाहर जो गड्ढों  में कीचड़ और पानी जमा है और बेकार झाड़ियाँ गंदगी बढ़ा कर मलेरिया के कीड़ों को जन्म दे रही हैं, उनसे गाँववालों को कैसे सचेत किया जाए। तीन दिन के बुखार ने उन्हें मलेरिया को गाँव से जड़-मूल से नष्ट करने पर बाध्य कर दिया था। वे सोच रहे थे कि मैं समझ-बूझ कर भी अगर इस महामारी से लोगों को सचेत नहीं करूँगा, तो ईश्व र कभी मुझे इसकी सजा दिए बिना नहीं रह सकते! उन्होंने पहले भी इस संबंध में गाँववालों से बात चलाई थी, पर यह चाह कर भी कि इस भीषण बीमारी से छुटकारा मिले, गड्ढों  और झाड़ियों की गंदगी दूर करने को कोई भी साथ देने को तैयार न था। वे इसे व्यर्थ का काम समझ कर इसकी जरूरत को महसूस नहीं कर रहे थे। वे तो सोचते थे कि जिसे गरज होगी, वह अपने आप करेगा ही-और फिर ये गड्ढेज और झाड़ियाँ आज की तो हैं नहीं, पुराने जमाने से चली आ रही हैं। और फिर, जो भाग्य में होगा, वह तो हो कर रहेगा ही, हम क्यों नाहक इस काम में अपना पैसा खर्च करें? रमेश को मालूम हुआ कि पास का एक गाँव तो इस महामारी के कारण प्रायः श्मशान हो गया है; और ताज्जुब यह है कि उसके पास एक दूसरा गाँव है, जहाँ अमन-चैन है। इस सूचना के पाते ही उन्होंने मन-ही-मन यह तय कर लिया था कि उनकी दशा ठीक होगी, तो वे निश्चाय ही उस गाँव में जा कर, वहाँ की हालत का निरीक्षण करेंगे। उन्हें यह विश्वामस हो गया था कि वहाँ मलेरिया न होने का कारण यही हो सकता है कि वहाँ पानी जमा न होता होगा और गाँव में सफाई रहती होगी। लोगबाग का ध्यान उस ओर न गया होगा; पर जब उन्हें यह बात समझाई जाएगी, तो निश्चरय ही उनकी समझ में आएगी। उन्हें सबसे बड़ी प्रसन्नता इस समय इस बात की हो रही थी, कि आज उनकी इंजीनियरिंग शिक्षा के इस्तेमाल का समय आया है-और वे परोपकार में उसका इस्तेमाल कर सकेंगे।

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