लोगों की राय

उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


यह कहकर वह बगल के दूसरे कमरे में चली गयी। देवदास की जब नींद टूटी तो दिन चढ़ गया था। घर में कोई नहीं था। चन्द्रमुखी स्नान करके भोजन पकाने की तैयारी में थी। देवदास ने चारों ओर आश्चर्य से देखा कि इस स्थान में वे कभी नहीं आये थे, एक चीज भी नहीं पहचान सके। पिछली रात की एक बात भी याद नहीं आती थी; केवल किसी की आन्तरिक सेवा का कुछ-कुछ स्मरण आता था। किसी ने मानो बड़े स्नेह के साथ लाकर सुला दिया। इसी समय चन्द्रमुखी ने घर में प्रवेश किया। रात की सज-धज में इस समय बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था। शरीर पर गहने तो अब भी वे ही थे। किन्तु रंगीन साड़ी, माथे का टीका, मुख में पान का दल आदि कुछ भी नहीं थे। केवल एक धोई हुई श्वेत साड़ी पहने हुए वह घर में आयी। देवदास चन्द्रमुखी को देखकर खिल उठे, बोले - 'कहां से कल मुझे यहां बुला ले आयीं?' चन्द्रमुखी ने कहा-'बुला नहीं लायी, रास्ते में तुम्हें पड़ा हुआ देखकर उठा ले आयी।'

देवदास ने कुछ गम्भीर होकर कहा-'अच्छा, यह तो हुआ सो हुआ, पर तुम्हें यहां कैसे पाता हूं? तुम कब आयीं? तुम तो गहना नहीं पहनती थी, फिर कैसे पहनने लगीं?'

चन्द्रमुखी ने देवदास के मुख पर एक तीव्र दृष्टि डालकर कहा-'फिर से...!'

देवदास ने हंसकर कहा-'नहीं-नहीं, यह हो नहीं सकता; ऐसी हंसी करने में भी दोष है। आयी कब?'

चन्द्रमुखी ने कहा-'डेढ़ महीना हुआ।'

देवदास ने मन-ही-मन कुछ हिसाब लगाया, फिर कहा-'मेरे मकान से लौटने के बाद ही यहां पर आयी?' चन्द्रमुखी ने विस्मित होकर कहा-'तुम्हारे घर पर मेरे जाने की खबर तुम्हें कैसे मिली?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book