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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

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कालजयी प्रेम कथा


'फिर?'
'देवा साले ने -ठेलकर- आं- आं-इबारती-'

'फिर हरामजादा?'

परंतु क्षण-भर में सारा व्यापार समझकर चटाई पर बैठकर पूछा-'देवा तुझे धक्के से गिराकर भागा है?'

भूलो अब और रोने लगा-'आं- आं- आं' इसके बाद कुछ क्षण चूने की झाड़ पोंछ हुई, किंतु श्वेत और श्याम के मिल जाने के कारण छात्र-सरदार भूत की भांति मालूम पड़ने लगा और तब भी उसका रोना बंद नहीं हुआ।

पंडितजी ने कहा-'देवा धक्के से गिराकर चला गया, अच्छा।'

पंडितजी ने पूछा-'लड़के कहां है़?' इसके बाद लडकों के दल ने रक्त-मुख हांफते-हांफते लौटकर खबर दी कि 'देवा को हम लोग नहीं पकड़ सके। उफ! कैसा ताक के ढेला मारता है!'

'पकड़ नहीं सके?'

एक और लड़के ने पहले कही हुई बात को दुहराकर कहा-'उफ! कैसा!'
'थोड़ा चुप हो!'

वह दम घोंटकर बगल में बैठ गया। निष्फल क्रोध से पहले पंडितजी ने पार्वती को खूब धमकाया फिर भोलानाथ का हाथ पकड़कर कहा-'चल एक बार जमींदार की कचहरी में कह आवें।'

इसका तात्पर्य यह है कि जमींदार मुखोपाध्यायजी के निकट उनके पुत्र के आचरण की नालिश करेंगे।

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