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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 7 ।

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ैं मानो
नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो ।
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो ।।

कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-
सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।

भावार्थ - कच्छप की पीठ में जिनके पाँव के गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्योंके रहनेका स्थान हुआ। तुलसीदासजी कहते हैं - रावण, कुम्भकर्ण और मेघनादरूपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्मपितामह कहते हैं - मेरी समझ में हनुमानजी के समान अत्यन्त बलवान् तीनों काल और तीनों लोक में कोई नहीं हुआ।। 7 ।।

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