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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 8 ।

दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको, तू
अंजनीको नंदन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन,
सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो ।।

दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो,
प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान,
साहेब सुजान, उर आनु हनुमान सो ।।

भावार्थ - आप राजा रामचन्द्रजी के दूत, पवनदेव के सुयोग्य पुत्र, अंजनीदेवी को आनन्द देनेवाले, असंख्य सूर्यों के समान तेजस्वी, सीताजी के शोकनाशक, पाप तथा अवगुण के नष्ट करनेवाले, शरणागतों-की रक्षा करनेवाले और लक्ष्मणजी को प्राणों के समान प्रिय हैं। तुलसीदासजी के दुस्सह दरिद्ररूपी रावण का नाश करने के लिये आप तीनों लोकों में आश्रयरूप प्रकट हुए हैं। अरे लोगो! तुम ज्ञानी, गुणवान् बलवान् और सेवा (दूसरों को आराम पहुँचाने) में सजग हनुमानजी के समान चतुर स्वामी को अपने हृदय में बसाओ।।8।।

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