व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
बदलाव
पहाड़ी के नीचे बनी कोठरी में घुसते ही दामोदर मिल गया। भीमा ने तपाक से
पूछा - कहो भीमा सब ठीक है ना?
नहीं हजूर, आज तो न जाने कल्लू दादा को क्या हो गया, दोपहर से शराब पी रहे हैं और जोर से रो रहे हैं। बहुत पूछा लेकिन कुछ बताते नहीं।'
'ऐसा क्या हो गया कल्लू दादा को। किसी बच्चे के हाथ पैर काटने में तो कभी उफ तक नहीं की.... आज तो एक नई मुर्गी भी आयी है, रात को उसके पांव काटने की तैयारी की है कि नहीं... रोबदार आवाज से भीमा ने पूछा।
'हजूर, तैयारी तो तब करें जब कल्लू दादा को होश आए।
'अरे, उस नए लड़के की टांग आज नहीं काटी तो आफत आ जाएगी। एक बार टांग कट गयी तो पड़ा रहेगा पांच-छ: महीने इसी कोठरी में और इतने दिनों में इन लौंडों के साथ रम जाएगा और भीख मांगने बाहर जाने लगेगा।
'पर कल्लू दादा.....?
'चल उसे ही देखते हैं..... दोनों अंदर आ गए। भीमा को देखकर कल्लू जोर जोर से रोने लगा।
'कल्लू दादा आखिर हुआ क्या है?'
कल्लू दादा ने अपनी मुट्ठी खोलकर चिट्ठी भीमा की ओर कर दी और बोला-भीमा मेरे भाई, तू कल ही इन सारे बच्चों को आजाद कर दे। सबको इनके घर भिजवा दे। मुझे तभी शान्ति मिलेगी- कल्लू दादा छाती पीटने लगा।
'पत्र में लिखा है कल्लू दादा की घरवाली को अपंग लड़की हुई है- भीमा ने पत्र का मजमून दोनों अनपढ़ रखवालों को समझाया।
'हिम्मत रख कल्लू ..'
'क्या हिम्मत रख भीमा। मुझे मेरे पाप की सजा मिल गयी। कब से मैं अपने बच्चे के लिए तरस रहा था। भगवान ने दिया भी तो अपंग .....। कल से कोई बच्चा भीख नहीं मांगेगा, छोड़ दे सबको।' 'इनको छोड़ दिया तो कल्लू दादा खाएगा क्या?'
'आज तक भगवान के नाम पर मांगा, कल सीधा भगवान से मांग लेंगे।'
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