व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
कलम बने हाथ
प्रजातन्त्र के पक्ष में कवि ने जनता के सम्मुख शासन के विरोध में अपनी
कविता सुनाई तो जनता ने उसे सपने की बात सोची।
राजा को जब इसका पता लगा तो उन्होंने कवि को दरबार में बुला लिया। उसे धन-दौलत और मान सम्मान का लालच दिया गया परन्तु कवि ने अस्वीकार कर दिया। अपनी आज्ञा का अपमान होता देखकर राजा ने जल्लाद को बुलाकर कविता लिखने वाले के दोनों हाथों को कलम (कटवा) करवा दिये।
भयभीत जनता ने उसकी कविता सुननी बंद कर दी। अब वह पेन नहीं पकड़ सकता था परन्तु वह कलम हुए हाथ को रोशनाई में डुबाकर दीवार पर कविताएँ लिखने लगा।
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