व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
|
9 पाठकों को प्रिय 198 पाठक हैं |
नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
चिड़िया
अनार के पेड़ पर बैठी चिड़िया बार बार चीं-चीं करती हुई फुदक रही थी। उसे
देखकर रेआंश ताली बजाकर चिल्लाने लगा- नन्हीं चिड़िया.. नन्हीं चिड़िया..
तुरन्त वह चिल्लाने लगा.... लंगड़ी चिड़िया...।
पास बैठी मां ने टोका- बेटे चिड़िया को ऐसे नहीं बोलना चाहिए। 'मम्मा इसकी एक टांग कहाँ चली गयी?'- रेआंश ने पूछा।
'चूहा ले गया'- बहकाते हुए मम्मा ने कहा।
'माँ, आप तो डाक्टर हो, इसको नयी टांग लगा दो ना- प्लीज मम्मा।'
'रेआंश ऐसा नहीं हो सकता, बेटे' अपने हाथ का काम छोड़कर मम्मा उसके पास आ गयी।
बेचारी को कितनी प्रोब्लम होती होगी। मम्मा आज ही इसको दूसरी टांग लगा दो, नहीं तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगा'- जिद्द पूर्वक वह कमरे के कोने में जा खड़ा हुआ।
डॉ. बिमला की समझ में नहीं आ रहा था। अपने बेटे रेआंश को कैसे समझाये। अनार के पेड़ पर लंगड़ी चिड़िया अब भी एक पांव से फुदक रही थी।
|