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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698
आईएसबीएन :9781613016015

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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं

उस पार


सड़क के किनारे खड़ा सूरदास अब पश्चाताप कर रहा था कि वह इस नए शहर में अकेला सड़क के उस पार आया ही क्यों। जैसे ही उसे किसी की पदचाप सुनाई देती वह झट से बोल पड़ता, 'भाई कोई सूरदास को सड़क पार करवा दो...।' परन्तु किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। एक बार हिम्मत करके उसने सड़क पार करनी चाही परन्तु तुरंत कई गाड़ियों के हॉर्न बज उठे। वह संभल कर पीछे हट गया।

एक घंटा बीत गया परन्तु किसी ने उसकी सहायता नहीं की। भरी दोपहर और प्यास के कारण उसका सिर चकराने लगा और कुछ ही समय में वह सड़क के किनारे गिरकर मूर्छित हो गया। फिर उसे कुछ मालूम नहीं क्या हुआ।

जब उसे होश आया तो उसने जानना चाहा कि वह कहां है।

'मैं डॉ॰ मीरा हूं। आप मेरी गाड़ी के सामने बेहोश हो गए थे इसलिए मैं आपको अपने घर ले आयी। आप चिंता न करें, अब आप बिल्कुल ठीक हैं। आप जहां भी जाना चाहेगें मैं आपको गाड़ी में छुड़वा दूंगी।'

'तब किसी ने उंगली थामकर मुझे सड़क पार नहीं करायी और अब गाड़ी में घर भेज रहे हो। भगवान तेरी भी लीला अपरंपार है' कहते हुए सूरदास ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए।


० ० ०

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