लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698
आईएसबीएन :9781613016015

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

198 पाठक हैं

नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं

ऊपर विषय-केंद्रित लघुकथा-पुस्तकों में केवल मधुकांत की पुस्तक ही स्वरचित है, शेष संपादित हैं। मधुकांत एक साथ उपन्यास, कहानी, लघुकथा, नाटक आदि विभिन्न विधाओं पर कलम चलाने वाले समाज-सेवी कलाकार हैं।

'हौसला' पुस्तक की लघुकथाओं को स्वयं लेखक ने 'निशक्त जीवन की लघुकथाएँ' कहा है। इसकी 51 लघुकथाओं में लेखक ने मुख्य रूप से शारीरिक रूप से विकलांग जीवन जीने वाले पात्रों के संघर्ष, जिजीविषा व सकारात्मक सोच को उभारा है। इसके साथ ही समाज में विकलांग मानसिकता वाले उन पात्रों की सोच को भी वाणी दी है, जो शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को कमतर समझते हैं और उनके प्रति उपेक्षा या घृणा का भाव रखते हैं। इनके अतिरिक्त भी समाज के कुछ ऐसे पात्रों पर कथाएं बुनी गई हैं, जो शारीरिक रूप से विकलांग न होने पर भी निःशक्त हैं।

आइए, 'हौसला' पुस्तक की कुछ लघुकथाओं का अवलोकन किया जाए।

'निःशक्त जीत' में कबड्डी की खिलाड़ी कमला अपना एक हाथ गँवाने के बाद भी अपनी पकड़ से किसी को निकलने नहीं देती। पत्रकार की बात का उत्तर देते हुए वह कहती है-'हार और जीत शरीर से नहीं, हौसले से होती है।' 'सूरदास' लघुकथा शारीरिक रूप से विवश व्यक्तियों के प्रति एहसास जगाने वाली रचना है। दोनों आँखें बांधकर खेलता हुआ राहुल चबूतरे से गिर जाता है, तो मां के द्वारा पूछने पर वह कहता है 'मैंने तो थोड़ी देर के लिए आँखें बांधी थीं तो ये हाल हो गया और वह हमारा पड़ोसी सूरदास... उसका जीवन कैसे चलता होगा?'

ऐसा ही एहसास 'बदलाव' लघुकथा में उभारा गया है। कल्लू दादा बच्चों को पकड़, उन्हें अपंग करवाकर भीख मंगवाता है। किन्तु जब उसका अपना बच्चा अपंग पैदा होता हैं, तो उसकी सोच बदल जाती है-मुझे मेरे पाप की सजा मिल गई है। कब से मैं अपने बच्चे के लिए तरस रहा था। भगवान् ने दिया भी तो अपंग...। कल से कोई बच्चा भीख नहीं मांगेगा, छोड़ दे सबको।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book