व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
|
9 पाठकों को प्रिय 198 पाठक हैं |
नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
'समर्थ' लघुकथा का पात्र उदय नई सोच के उदय की जरूरत का एहसास कराता है। अपंग होकर भी वह सामान्य श्रेणी से ही नियुक्त होना चाहता है, क्योंकि उसमें ऐसी सामर्थ्य है। अधिकारी के द्वारा पूछने पर उदय कहता है-'सर, मेरा तो काम चल जाएगा। इस विकलांग आरक्षित सीट का लाभ मेरे किसी भाई को मिल जाए तो अधिक अच्छा रहेगा।' 'उपकार' लघुकथा बताती है कि जिसे समाज अपंग कहता है, वह संकट में दूसरों के काम आता है। जिस माधो को भीख मांगने के कारण एक औरत भला-बुरा कहती है, वही माधो उसके पोते को भीड़ के रेले में दबने से बचाता है, लेकिन स्वयं उसमें दब जाता है। वह औरत कहती भी है, 'भिखारी तो हम हैं, वह तो हमारा भगवान् है। मैं ही अंधी हो गई-उसको पहचान न सकी।'
पुस्तक की शीर्षक लघुकथा 'हौसला' में एक पोलियोग्रस्त व्यक्ति हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर रक्तदान अवश्य करता है। 'प्रेरणा' लघुकथा अपंग बच्चों के माता-पिता को प्रेरणा देती है कि ऐसे बच्चों का हौसला कैसे बढ़ाना चाहिए। 'विकलांग कैंप' लघुकथा इस सच्चाई को सामने लाती है कि विकलागों के नाम पर किस तरह पैसा हजम किया जाता है। 'तालियाँ' लबुकथा बताती है कि यदि अपंग व्यक्ति का साहस और समाज की शाबाशी-दोनों का संयोग हो जाए जो अपंगता दूर भी हो सकती है। इस रचना में नृत्यांगना कामनी एक पाँव से नृत्य करके भी प्रथम स्थान प्राप्त करती है। इसके बाद लोगों की तालियों से उसमें इतना उत्साह व उमंग जागती है कि उसका दूसरा पाँव भी जमीन पर जमने लगता है।
|