व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
भाग-दौड़
ईमानदार क्लर्की में रोटी की लड़ाई न लड़ी जा रही थी तो उसने सायं के समय एक
लाला के यहां पार्ट टाइम कर लिया। पांच बजे दफ्तर छूटते ही उसे छह बजे तक
पहुँचना होता था। किसी दिन लेट हो गए तो गए काम से।
आज भी हाथ में भारी थैला लिए सदर बाजार से गुजर रहा था और प्रतिदिन की भांति पटरी वालों पर क्रोध आ रहा था। भीड़ के कारण उनके कंधे छिलने से लगे थे।
उसे इतना तो ध्यान है वह एक बुढिया से टकराया, वह गिर पड़ी लेकिन पीछे मुड़कर देखने का अर्थ था पार्ट टाइम से छुट्टी, इसलिए वह अधिक तेजी से चलने लगा।
हार-थककर रात के समय जब घर में प्रवेश किया तो गैलरी से मां के कराहने की आवाज सुनी।
'क्या बात है मां? वह वहीं ठहर गया।
'पैर में मोच आ गयी, राह चलते एक बदमाश धकेल कर चला गया; - माँ कराहते हुए कोसने लगी।'
'ओह- जेब में पड़ा ओवर टाइम उसे बहुत बोझिल लगने लगा।'
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