व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
टुण्डा छोकरा
मेम साहब... मेम साहब... एक रुपया दो ना... भूख लगी है- लगभग दस वर्ष का छोकरा हाथ फैलाए उसके पीछे चल रहा था।
'कैसा रुपया,- चल अपना काम कर - काले चश्मे में झिड़ककर' मेम तेज कदमों से निकल पड़ी।
'ये ही अपाहिज छोकरे लोगों की जेब साफ करते हैं, इनसे हमेशा सावधान रहना चाहिए.... बगल से निकालकर उसने अपना पर्स टोकरी में रख लिया।'
दुकानदार से सारा राशन बंधवाने के बाद जैसे ही उसने टोकरी में हाथ डाला तो उसकी चीख निकल गयी- हाय मेरा पर्स....।
'तुमने टोकरी में रखा था'- सहेली ने बताया।'
'देख लिया उसमें नहीं है। हाय पूरे महीने का वेतन है। जरूर उस टुण्डे छोकरे ने निकाल लिया होगा- हाय.
'मेम साहब तुम्हारा पर्स, सड़क पर पड़ा था'- वही टुण्डा छोकरा उसके सामने खड़ा था। मेम ने पर्स खोलकर रुपये संभाले। उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आयी। इनाम देने के लिए जैसे ही उसने छोटा नोट निकाला परन्तु दूर दूर तक उसे छोकरा दिखाई न दिया।
उस कागज के टुकड़े को भारी मन से अपने पर्स में ठोंस लिया।
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