व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
निशक्त राज्य
सम्राट अशोक ने अपने मंत्री जी को बुलाकर युद्धस्थल देखने की इच्छा प्रकट
की। एक क्षण तो मंत्री जी सकुचाए परन्तु फिर उत्साह के साथ सम्राट को
रणभूमि दिखाने की व्यवस्था कर दी।
युद्ध के मैदान में अभी भी घायलों की कराहटें, अबलाओं का रूदन और माताओं का छाती पीट-पीटकर क्रन्दन... सब देखकर सम्राट का मन द्रवित हो गया।
'मंत्री जी, इस सारे संताप का कारण मैं हूँ.... एक जमीन के टुकड़े के लिए इतने लोगों का अभिशाप... नहीं, नहीं मंत्री जी इन लोगों के आँसू और आहों का कारण मुझे नहीं बनना। इन लोगों की विकलांगता को देखते हुए मैं कभी भी इनके दिलों पर राज नहीं कर पाऊंगा.... सम्राट अशोक लगभग विलाप करने लगे। मंत्री जी ने धीरज देने के लिए अनेक उपक्रम किए।
तभी सम्राट अशोक ने अपना निर्णय सुना दिया- मंत्री जी मैं ऐसी निःशक्त विजय नहीं चाहता। आज से मैं अपने अस्त्रों-शस्त्रों का त्याग करता हूँ- कहते हुए सम्राट ने अपने सभी हथियार जमीन पर रख दिए।
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