व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
तीन टांग
बचपन से रामभज वैशाखी के सहारे चलता था, इसलिए साथियों ने उसका नाम तीन
टांग रख दिया। हंसी मजाक या चिड़ाने की दृष्टि से उसका यही नाम प्रचलित हो
गया। आरम्भ में रामभज तथा उसके माता-पिता को यह अच्छा नहीं लगता परन्तु
धीरे-धीरे उनको यह सब सुनने की आदत हो गयी।
एक दिन रामभज और रमेश साथ-साथ जा रहे थे। रामभज संगीत सिखाने के लिए किसी घर में चला गया और रमेश बस्ती के बाहर एक ढाबे पर जा बैठा। ढाबे पर बैठे बैठे उसने इतनी शराब पी ली कि होश ही गायब हो गए। घर जाने के लिए जैसे ही सड़क पार करने लगा तो घूम गया। उसे लगा सारी धरती आकाश में उड़ रही है। उसने घरती को जोर से पकड़ लिया। कुछ समय बाद रामभज वहां आ गया। उसकी हालत देखकर एक क्षण उसने सोचा- मुझे तीन टांग-तीन टांग कहकर बहुत चिड़ाता था। अपनी टांगों पर बड़ा गरूर है, मरने दो साले को....। दूसरे ही क्षण उसे ख्याल आया अनेक लोग मेरी भी सहायता करते हैं इसलिए मुझे भी निःशक्त की सहायता करनी चाहिए।
रामभज ने एक हाथ का सहारा देकर उसको खड़ा किया। अपनी वैशाखी की सहायता से सड़क पार करायी और धीरे-धीरे घर तक ले आया। माफ करना भाई रामभज। जिन टांगों का मैं उपहास उड़ाया करता था, उन्हीं तीन टांगों ने मुझे सहारा दिया। बहुत बहुत धन्यवाद- कहते हुए रमेश अपने घर के अंदर चला गया।
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