व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
अन्ध-विश्वास
उस दिन मौसम का सबसे ठण्डा दिन था। सुबह-सुबह एक सूरदास इकतारे के साथ भजन
गाता हुआ गुजर रहा था। घर के सामने आया तो पापा ने उसे अन्दर बुला लिया।
मम्मी से बोलकर उसको चाय बिस्कुट दिलवा दिया। बड़ी अम्मा को यह अच्छा नहीं
लगा फिर भी वह चुप रही।
पापा प्रत्येक रविवार उसको घर बुलाकर चाय पिलाने लगे।
जब बड़ी अम्मा से सहन न हुआ तो उन्होंने पापा को टोक दिया- अरे सुरेश तू भी किस अंधे के चक्कर में पड़ गया। यही मेरे मंदिर जाने का समय... सुबह-सुबह अन्धा सामने पड़ जाए तो ना जाने कैसा दिन गुजरे....।
माँ सूरदास की आत्मा में परमात्मा...।
'तेरी मत मारी गयी... भगवान इसके कर्मों की सजा देता है- बड़बड़ाती अम्मा मन्दिर चली गयी।
'देखो सूरदास, माँ का बुरा मत मानना। ये लो पांच सौ रुपये इससे एक महीने तक आपका चाय-खर्च चल जाएगा।'
'नहीं भाई मुझे चाय पीने की आदत नहीं है। मैं तो आपका स्नेह देखकर आ जाता था। भगवान आपके परिवार का कल्याण करें- पांच सौ रुपये वापस लौटाकर सूरदास बाहर चला गया।
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