व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
उपकार
कई वर्षों से विकलांग माघो मंदिर के बाहर, अपनी वैशाखियों के सहारे खड़ा
भीख मांगता। कोई दे दे तो भी भला, कोई न दे तो भी भला। इस बार मंदिर के
वार्षिकोत्सव पर दुगनी भीड़ थी। माघो को अधिक मिलने की उम्मीद थी। उसने एक
अधेड़ महिला के सामने हाथ फैला दिया।
'अरे हट्टा-गट्टा तो है, कुछ काम करके कमा क्यों नहीं लेता'- बड़बड़ाती हुई प्रौढ़ महिला अपने पोते की उंगली पकड़कर आगे निकल गई। 'माई का भला करे भगवान'- माघो ने मुस्कराकर कहा।
अचानक पीछे से भीड़ का एक रेला आया और सब कुछ चीख-पुकार में बदल गया। 8 लोग मरे, 5० घायल जिसमें अधिकतर महिलाएं व बच्चे। होश आते ही दादी ने अपने पोते को याद किया। उसके बेटे ने बताया कि उसका पोता बिल्कुल ठीक है। एक लंगड़े भिखारी ने अपनी दोनों बैशाखियों की ओट करके तुम्हारे पोते को बचाया।
'अरे बेटा शुभ शुभ बोल। उस लंगड़े को भिखारी मत बोल। उसने तो सब कुछ हमारी झोली में डाल दिया। भिखारी तो हम हैं, वह तो हमारा भगवान है। मैं ही अंधी हो गयी- उसे पहचान न सकी। तू जल्दी से मुझे उसके पास ले चल। मुझे उससे माफी मागनी है बेटे'- मां रोने लगी।
मां मैंने उसको बहुत खोजा, फिर पता लगा कि वह भीड़ में दबकर मर गया और पुलिस उसे उठाकर ले गयी- बेटे का स्वर भी डूब गया।
'हे भगवान'-- कहते कहते, दादी फिर बेहोश हो गई।