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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


प्रेम की सरिता और परमात्मा का सागर है। लेकिन हम प्रेम की सरिता ही नहीं हैं, हम प्रेम की नदियां ही नहीं हैं। और हम बैठे हैं हाथ जोड़े और प्रार्थनाएं कर रहे हैं कि हमको भगवान चाहिए। जो सरिता नहीं है, वह सागर को कैसे पाएगी?

सारी मनुष्य-जाति के लिए पूरा आंदोलन चाहिए। पूरी मनुष्य-जाति के आमूल परिवर्तन की जरूरत है। पूरा परिवार बदलने की जरूरत है। बहुत कुरूप है हमारा परिवार। वह बहुत सुंदर हो सकता है, लेकिन केवल प्रेम के केंद्र पर ही। पूरे समाज को बदलने की जरूरत है और तब एक धार्मिक मनुष्यता पैदा हो सकती है।
प्रेम प्रथम, परमात्मा अंतिम।
और क्यों यह प्रेम परमात्मा पर पहुंच जाता है?
क्योंकि प्रेम है बीज और परमात्मा है वृक्ष। प्रेम का बीज ही फिर फूटता है और वृक्ष बन जाता है।
सारी दुनिया की स्त्रियों से मेरा कहने का यह मन होता है और खासकर स्त्रियों से, क्योंकि पुरुष के लिए प्रेम अन्य बहुत-सी जीवन की दिशाओं में एक दिशा है। स्त्री के लिए प्रेम अकेली दिशा है। पुरुष के लिए प्रेम और बहुत-से जीवन आयामों में एक आयाम है। उसके और भी आयाम हैं व्यक्तित्व के, लेकिन स्त्री का एक ही आयाम, एक ही दिशा है-वह है प्रेम। स्त्री पूरी प्रेम है। पुरुष प्रेम भी है और दूसरी चीज भी है।

अगर स्त्री का प्रेम विकसित हो तो वह समझे, प्रेम की कीमिया, प्रेम का रसायन! और बच्चों को दीक्षा दे प्रेम की और प्रेम के आकाश में उठने की शिक्षा दे, उनको पंखों को मजबूत करे। लेकिन अभी तो हम काट देते हैं पंख कि विवाह की जमीन पर सरको, प्रेम के आकाश में मत उड़ना। जरूर आकाश में उड़ना जोखिम का होता है और जमीन पर चलना जोखिम का नहीं होता है। लेकिन जो जोखिम नहीं उठाते हैं वे जमीन पर रेंगने वाले कीड़े हो जाते हैं। जो जोखिम उठाते हैं वे दूर अनंत आकाश में उड़ने वाले बाज पक्षी सिद्ध होते हैं।
आदमी रेंगता हुआ कीड़ा हो गया है, क्योंकि हम सिखा रहे हैं, कोई भी जोखिम रिस्क न उठाना कोई खतरा डेंजर मत उठाना। अपने घर का दरवाजा बंद करो और जमीन पर सरको। आकाश में मत उड़ना। जब कि होना यह चाहिए कि हम प्रेम की जोखिम सिखाएं, प्रेम का खतरा सिखाए, प्रेम का अभय सिखाए और प्रेम के आकाश में उड़ने के लिए पंखों को मजबूत करें। और चारो तरफ जहा भी प्रेम पर हमला होता हो उसके खिलाफ खड़े हो जाएं, प्रेम को मजबूत करें, ताकत दें।

प्रेम के जितने दुश्मन खड़े हैं दुनिया में, उनमें नीति-शास्त्री भी हैं। थोथे हैं वे नीति-शास्त्र क्योंकि प्रेम के विरोध में जो हो, वह क्या नीति-शास्त्री होगा? साधु-संन्यासी खड़े हैं प्रेम के विरोध में, क्योंकि वे कहते हैं कि यह सब पाप है, यह सब बंधन है, इसको छोड़ो और परमात्मा की तरफ चलो।
जो आदमी कहता है कि प्रेम को छोड़कर परमात्मा की तरफ चलो, वह परमात्मा का शत्रु है, क्योंकि प्रेम के अतिरिक्त परमात्मा की तरफ जाने का कोई रास्ता ही नहीं है।
बड़े-बूढ़े भी खड़े हैं प्रेम के विपरीत, क्योंकि उनका अनुभव कहता है कि प्रेम खतरा है। लेकिन अनुभवी लोगों से जरा सावधान रहना, क्योंकि जिंदगी में कभी कोई नया रास्ता वे नहीं बनने देते। वे कहते हैं कि पुराने रास्ते का हमें अनुभव है हम पुराने रास्ते पर चले हैं उसी पर सबको चलना चाहिए।
लेकिन जिंदगी को रोज़ नया रास्ता चाहिए। जिंदगी रेल की पटरियों पर दौडती हुई रेलगाड़ी नहीं है कि बनी पटरियों पर दौड़ता रहे। यदि दौड़ेगी तो एक मशीन हो जाएगी। जिंदगी, तो एक सरिता है, जो रोज़ एक नया रास्ता बना लेती है पहाड़ों में, मैदानों में, जंगलों में। अनूठे रास्ते से निकलती है, अनजान जगत में प्रवेश करती है और सागर तक पहुंच जाती है।
नारियों के सामने आज एक ही काम है। वह काम यह नहीं है कि अनाथ बच्चों को पढ़ा रही हैं बैठकर। तुम्हारे बच्चे भी तो सब अनाथ है। नाम के लिए वे तुम्हारे बच्चे हैं। न उनकी माँ है, न उनका बाप। समाज-सेवक स्त्रियां सोचती है कि अनाथ बच्चों का अनाथालय खोल दिया बहुत बड़ा काम कर दिया। उनको पता नहीं कि तुम्हारे बच्चे भी, अनाथ है। तुम दूसरों के अनाथ बच्चों को शिक्षा दैने जा रही हो, तो तुम पागल हो। तुम्हारे बच्चे खुद अनाथ ऑरफंस है? कोई नहीं उनका-न तुम हो, न तुम्हारे पति हैं। न उनकी मां है और न उनका बाप है, क्योंकि
वहू प्रेम ही नहीं है, जो उनको सनाथ बनाता।
सोचते हैं हम कि आदिवासी बच्चों को जाकर शिक्षा दें। तुम आदिवासी बच्चों को जाकर शिक्षा दो और तुम्हारे बच्चे धीरे-धीरे आदिवासी हुए चले जा रहे हैं। ये जो बीटल हैं बीटनिक हैं; फला है ढिका हैं; ये फिर से आदमी के आदिवासी होने की शक्लें हैं। तुम सोचते हो, स्त्रियां सोचती हैं कि जाएं और सेवा करें।

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