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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


जिस समाज में प्रेम नहीं है, उस समाज में सेवा कैसे की जा सकती है?
सेवा तो प्रेम की सुगंध है।
मैं तो एक ही बात आज कहना चाहूंगा। आज तो सिर्फ एक धक्का आपको दे देना चाहूँगा, ताकि आपके भीतर चिंतन शुरू हो जाए। हो सकता है मेरी बातें आपको बुरी लगें। लगें तो बहुत अच्छा है। हो सकता है मेरी बातों से आपको चोट लगे, तिलमिलाहट पैदा हो। भगवान करें जितनी ज्यादा हो जाए, उतना अच्छा है, क्योंकि उससे कुछ सोच-विचार पैदा होगा।

हो सकता है मेरी सब बातें गलत हों, इसलिए मेरी बात मान लेने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन मैंने जो कहा है, उस पर आप सोचना। मैं फिर दोहरा देता हूं दो-चार सूत्रों को और कहकर अपनी बात पूरी किए देता हूं।

आज तक मनुष्य का समाज प्रेम के केंद्र पर निर्मित नहीं है, इसीलिए विक्षिप्तता है, इसीलिए पागलपन है, इसीलिए युद्ध है, इसीलिए आत्महत्याएं है, इसीलिए अपराध हैं। प्रेम की जगह आदमी ने एक झूठा स्थानापन्न, सब्स्टीट्यूट विवाह का ईजाद कर लिया है। विवाह के कारण वेश्याए हैं, गुडे हैं। विवाह के कारण शराबी हैं विवाह के कारण बेहोशियां है। विवाह के कारण भागे हुए संन्यासी हैं विवाह के कारण मंदिरों में भजन करने वाले झूठे लोग हैं। जब तक विवाह है, तब तक यह रहेगा।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवाह मिट जाए, मैं यह कह रहा हूं कि विवाह प्रेम से निकले। विवाह से प्रेम नहीं निकलता है। प्रेम से विवाह निकले तो शुभ है, और विवाह से प्रेम को निकालने की कोशिश की जाए तो यह प्रेम झूठा होगा, क्योंकि जबर्दस्ती कभी भी कोई प्रेम नहीं निकाला जा सकता है। प्रेम या तो निकलता है या नहीं निकलता है, जबर्दस्ती नहीं निकाला जा सकता है।

तीसरी बात मैंने यह कही कि जो मां-बाप प्रेम से भरे हुए नहीं हैं उनके बच्चे जन्म से ही विकृत, परवटेंड, एज्जार्मल, रुग्ण और बीमार पैदा होंगे। मैंने यह कहा, जो मां-बाप, जो पति-पत्नी, जो प्रेमी युगल प्रेम के संभोग में लीन नहीं होते हैं, वे केवल उन बच्चों को पैदा करेंगे जो शरीरवादी होंगे, भौतिकवादी होंगे। उनकी
जीवन की आंख पदार्थ से ऊपर कभी नहीं उठेगी, वे परमात्मा को देखने के लिए अंधे पैदा होंगे।
आध्यात्मिक रूप से अंधे बच्चे हम पैदा कर रहे हैं।
मैंने आपसी चौथी बात यह कही कि मां-बाप अगर एक-दूसरे को प्रेम करते हैं तो ही वे बच्चों के मां-बाप बनेंगे; क्योंकि बच्चे उनकी ही प्रतिध्वनियां हैं। वे आया हुआ नया बसंत हैं। वे फिर से जीवन के दरख्त पर लगी हुई कोंपले है। लेकिन जिसने पुराने बसंत को प्रेम नहीं किया, वह नए बसंत को कैसे प्रेम करेगा?
और मैंने अंतिम बात यह कही कि प्रेम शुरुआत है और परमात्मा अंतिम विकास है। प्रेम में जीवन शुरू हो तो परमात्मा में पूर्ण होता है। प्रेम बीज बने तो परमात्मा अंतिम वृक्ष की छाया बनता है। प्रेम गंगोत्री हो तो परमात्मा का सागर उपलब्ध होता है।

जिसके मन की कामना हो कि परमात्मा तक जाए वह अपने जीवन को प्रेम के गीत से भर ले। और जिसकी भी आकांक्षा हो कि पूरी मनुष्यता परमात्मा के जीवन से भर जाए, वह सारी मनुष्यता को प्रेम की तरफ ले जाने के मार्ग पर जितनी बाधाएं हों, वह उनको तोड़े, मिटाए और प्रेम को उन्मुक्त आकाश दे, ताकि एक दिन एक नए मनुष्य का जन्म हो सके।

पुराना मनुष्य रुग्ण था, कुरूप था, अशुभ था। पुराने मनुष्य ने अपने आत्मघात का इतजाम कर लिया है। वह आत्महत्या कर रहा है। सारे जगत में वह एक साथ आत्मघात कर लेगा। सार्वजनीन आत्मघात यूनीवर्सल स्यूसाइड का उपाय कर लिया गया है। अगर इसे बचाना है तो प्रेम की वर्षा, प्रेम की भूमि और प्रेम के आकाश को निर्मित कर लेना जरूरी है।

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